मानव संसाधन विकास

अगस्त 1999 में लिखी यह गद्य कविता खो गई थी । बरसों बाद मिली । इसे 2020 नवंबर में वृक्षमंदिर पर प्रकाशित किया गया था ।

“नीयत” और “नियति“ की कश्मकश की धुँध मे जब ज़िंदगी को कुछ सूझता नहीं, समझ में नहीं आता तब चल पड़ती है ज़िंदगी , “नियति” द्वारा “नियत” किये गये रास्ते पर ! क्यों कि चलते रहना तो ज़िंदगी की नियति है ! चरैवेति चरैवेति

जीवन के संध्या काल में समझ में आता है, कि मानवी को जब यह निर्णय न कर पाये कि ज़िंदगी की डगर पर अब कैसे आगे बढ़ें , मन बुद्धि दिग्भ्रांत हो जाये तब “नियति” ही निर्णय करती है और अपने द्वारा “नियत” राह पर चलने को कहने लगती है और चलना ही पड़ता है !

मानव संसाधन विकास

साल रहा होगा उन्नीस सौ सडसठ अड़सठ 

कहा संस्था से सरकार से

धन्ना सेठ के खाते पीते परिवार से

मुझे नही जानना तुम चाहते या माँगते क्या हो

हम मानेंगे जो कहोगे कहेंगे जो चाहोगे

बस हम चाहते हैं एक अदद नौकरी ।

क्योंकि

जीवन से कराती है साक्षात्कार नौकरी

नून तेल लकड़ी का करती है इन्तज़ाम नौकरी

वर वधू संबंधों को मधुर बनाती है नौकरी

सड़क छाप लौंडे को भी बेटा कहलवाती है नौकरी ।

ख़ैर जब नौकरी दी एक संस्था ने

लगा जैसे वीराने मे सब्ज़बाग़ की बहार दी

तब कहा गया था

ईमानदारी, प्रामाणिकता और प्रतिबद्धता होंगे सोपान प्रगति के

आकांक्षाओं की लहरें जब करे विचलित तब विचार करना उनका जिन्हे नही मिली नौकरी ।

कहाँ गये वो दिन जब एहसास था संस्था चलती है हम से ,

जीवन के संध्या काल के जब बचे दिन थोड़े शेष

कार्य संपादन, मानव संसाधन विकास, संस्था विकास,

उत्पादन, विपणन, निवेश, ईर्ष्या , द्वेष

आने वाला था शताब्दी का अंत


न आगे बढ़ने की होड़,

पीछे न हटने का मोह,

देखे सब

दौड़ता जीवन रुक सा गया

आपाधापी मारामारी

पर

अब भी ईमानदारी, प्रामाणिकता और प्रतिबद्धता

नामधारी प्रगति के सोपानों की खोज है जारी ।

ईमानदार है वह जो सम्मानित हो,

प्रामाणिकता बाँधती है

प्रतिबद्धता मूर्खता का पर्याय बन चुकी है

कार्य कुशलता बाज़ारों मे बिकती है

बिकते हैं, ख़रीदते है और बेचते हैं

कार्य कुशलता

मानव संसाधन के विकास के लिये

वही जिन्हे है नसीब अब भी नौकरी


8/8/1999

Loading

Published by Vrikshamandir

A novice blogger who likes to read and write and share

%d bloggers like this: