
कई मित्र कहते हैं भारत में पत्रकारिता आज कल एक संकट काल से गुजर रही है । अपनी दलील में कहते हैं भारतीय पत्रकार दो खेमों मे बँट गये हैं । पाठकों को “समाचार” देते समय समाचार विचारों की छौंक लगा कर ही परोसे जाते हैं ।
कुछ पत्रकार मोदी विरोधी है तो बहुत से मोदी समर्थक । उदाहरण के लिये अर्नब मोदी समर्थक और रवीश मोदी विरोधी ।

हम अब चौबीस घंटे समाचार युग में रहते हैं
मेरे विचार से पत्रकारों मे, पहले सरकार समर्थक और सरकार विरोधी होते थे । पर इस तरह की गोलबंदी, इतनी खेमा बंदी नही दिखाई देती थी।
मेरा जन्म भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले का है। बचपन मे तो जब अख़बार पढ़ना शुरू किया तब नेहरू जी और कांग्रेस की नीतियों, कार्यक्रमों के बारे मे ही पढ़ने को मिलता था। जवान हुआ तब लोहिया जी को, अटल जी को मधु लिमये जी को भाषण देते देखा और सुना । एक दूसरा पक्ष जो अखबारो मे पूरी तरह नही आता था वह भी सुनने को सोचने को मिला ।फिर शास्त्री जी आये ।
नेहरू जी के प्रभावशाली नेतृत्व के बाद कुछ समय लगा शास्त्री जी को भारतीय जन मानस पर अपनी अलग पहचान बनाने मे । उनकी सादगी, उनका ज़मीन से जुड़े अदना से आम आदमी से देश का नेता बन जाना अनहोनी घटना थी। काश असमय काल कवलित न होते शास्त्री जी । देश बदल जाता।
इंदिरा जी का ज़माना ग़ज़ब का था । कांग्रेस बँट चुकी थी। बड़े बड़े धुरंधर नेताओं को इंदिरा जी ने पटखनी दी । इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा का ज़माना आया। देश विदेश मे भारत की प्रधान मंत्री की धाक बनी । पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाली इंदिरा जी का इमरजेंसी वाला ज़माना भी देखा।
सरकार समर्थक हमेशा से रहे हैं और सरकार विरोधी भी। पर संवाद मे इतनी तल्ख़ी, एक तरफ़ा बयान बाज़ी नही होती थी।
आचार्य बिनोबा भावे थे पहले भारतीय जिन्हे पहली बार मैगसैसे पुरस्कार मिला । बड़े गणमान्य भारतीयों को मिला यह पुरस्कार शुरुआत मे!
यह पहला मौक़ा नहीं है कि जब एक भारतीय पत्रकार मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित हुआ हो । लंबी फ़ेहरिस्त है मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित भारतीय पत्रकारों की । पहले भारतीय पत्रकार जो इस पुरस्कार से सम्मानित हुये वह थे अमिताभ चौधरी (१९६१) ।अमिताभ चौधरी को पत्रकारिता, साहित्य और रचनात्मक संचार (Journalism, Literature and Creative Communication ) के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान के लिये यह अवार्ड मिला था।
उनके बाद इस श्रेणी में सत्यजीत रे ( १९६७),बीज़ी वर्गीज़ (१९७५) , गौर किशोर घोष (१९८१), अर्जुन शौरी (१९८२), राशिपुरम लक्ष्मण ( १९८४), के व्ही सुबन्ना( १९९१), रविशंकर (१९९२), महाश्वेता देवी ( १९९७) , पी सारनाथ (२००७) को यह पुरस्कार मिला ।
२००७ से बाद पत्रकारिता ( Journalism) की श्रेणी में २०१९ में यह पुरस्कार NDTV के रवीश कुमार को यह पुरस्कार मिला।
पूरी जानकारी यहाँ उपलब्ध है ।
Indian Recipients of Ramon Magsaysay Award
ऐसा क्यों है कि वह पत्रकार जो जन साधारण की समस्याओं को अपने लेखन / संबोधन में उठाता हो वह सरकार समर्थक ख़ेमे से “समाचारों में सरकार विरोध की सोंधी छौंक” लगा परोसने के लिये जाना जाता है। वह वास्तव में ऐसा करता है या ऐसी छवि बन जाती है ।
शुरुआत मे मैगसैसे पुरस्कृत भारतीयों जैसे विनोबा भावे, चिंतामणि देशमुख, मदर टेरेसा, सुब्बालक्ष्मी, त्रिभुवन दास पटेल, व्ही कुरियन, डी एन खुरोडी, ..आदि की तुलना बाद के मैगसैसे पुरस्कृत भारतीयों महानुभावों से करना कुछ अजीब सा लगता है।
थोडा कहना बहुत समझना पढ़ने वाले समझ जायेंगे भई हम तो नासमझ सठिआये बूढ़े!
बहुत ख़ूब लिखे हो। सचमुच इस वर्ष पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया गया पुरस्कार अत्यधिक चौकाने वाला हे। “थोड़ा कहना, बहुत समझना” में तुमने बहुत कुछ समझा दिया।
पुरस्कार से सम्मानित लोगों में श्री डी ऐन खुरोडी का नाम (जिन्हें १९६३ में डॉक्टर कुरियन और श्री त्रीभुवन दास पटेल के साथ यह पुरस्कार मिला था) ना देखकर बहुत आश्चर्य हुआ।
धन्यवाद ! गलती सुधार ली गई है । पहले सारे अवार्डीज के नाम लिखे पर कुछ पंक्तियाँ मिट गई । अब वह पैरा ही निकाल दिया । वैसे लिंक में सब नाम है संत विनोबा भावे से ले कर रवीश जी तक ।