कोरोना टाइम्स अंक ६
डाक्टर सक्कल प्रसाद भारती के कोरोनोपरांत प्रसारित होने वाले टेलीवाइज्ड साक्षात्कार का ध्वनि मुद्रण
दिगदिगंत ओझा- नमस्कार डाक्टर सक्कल नेशन वांटेड टू नो पर आपका स्वागत है !
डाक्टर सक्कल – नमस्कार, नमस्कार भला हो ज़ूम का अब हम साक्षात आप के सम्मुख आप के टीवी पैनल पर उपस्थित है। कहिये आप हमारा साक्षात्कार आख़िर क्यों करना चाहते हैं, दिगदिगंत जी!

दिगदिगंत- बताइये आप कैसे हैं ?
ढाक्टर सक्कल-दिख नहीं रहा कैसे हूं? आपके सामने मेरी लाइव फ़ोटो टीवी स्क्रीन पर आ रही है और आप पूछ रहे हैं मैं कैसे हूँ ? आश्चर्य है रौरव ने कैसे कैसे लोग भर रखे हैं अपने चैनल में । आप भी कैसे हैं, कैसे हैं छोड़ वह सारे प्रश्न पूछिये जिसके लिये आप मुझसे मिल रहे हैं ।
दिगदिगंत- ठीक है कोरोना टाइम में कोरोना टाइम्स का प्रकाशन करने की नौबत क्यों और कैसे आन पड़ी ?
डाक्टर सक्कल- देखिये सिरिमान आप बहुत ऊँची बात खींच रहे हैं । पर आप के प्रश्न में ही उसका उत्तर छुपा हुआ है। आपने कहा कोरोना टाइम में कोरोना टाइम्स । कोरोना टाइम में कोरोना टाइम्स का प्रकाशन इसमें कौन सी बड़ी बात है । कोरोना टाइम में कोरोना डाइजेस्ट , कोरोना एक्सप्रेस, कोरोना ही निकलेंगे न यह सब एक प्राकृतिक प्रक्रिया है ।
दिगदिगंत – प्राकृतिक क्या है ?
डाक्टर सक्कल – वह जो अप्राकृतिक नहीं है ।
दिगदिगंत- यह तो जबाब नहीं हुआ ।
डाक्टर सक्कल- प्रश्न ही ऐसा पूछा आपने जो जबाब लायक़ नहीं था । कुछ क्रांतिकारी प्रश्न पूछिये दिगदिगंत जी ।झटका उत्तर दूँगा। हलाल नहीं ।
दिगदिगंत- अब उत्तर में झटका, हलाल का वर्गीकरण कैसे होगा ?
डाक्टर सक्कल- जो जबाब झटक से दिया जाय वह उत्तर झटका और जो जबाब धीर धीरे घुमा फिरा कर ऐसे दिया जाय कि प्रश्नकर्ता का हाल हलाल होते बकरे की तरह हो जाये तो वह उत्तर हलाल!
दिगदिगंत- कोई उदाहरण दे कर बतायें ?
डाक्टर सक्कल- किसका उदाहरण जबाब का या सवाल का ?
दिगदिगंत- दोनों का ।
डाक्टर सक्कल- आप जबाब पूछने आये हैं इसलिये सवाल तो आप ही पूछेंगे न ।क्रांतिकारी सवाल पूछें।
दिगदिगंत- जानते हैं हम क्रांतिकारी प्रश्न नहीं पूछते । क्रांतिकारी प्रश्न पूछने वाले एंकर का क्या हुआ जानते हैं न ? नौकरी छूट गई ।आपको लिंक भेज रहा हूँ । अगर न देखी हो तो देख लीजियेगा ।
डाक्टर सक्कल- अरे हम देख चुके हैं भाई । हम सब जानते हैं । पर नौकरी जाने में भी कितने साल लगे ? तीन चार साल ! पर अब भी यह भाई फ़्रीडम आफ स्पीच का पूरा लाभ लेते हुये सरकार का विरोध करने में लगा है और आज भी प्रासंगिक बना हुआ है । ऐसी हिम्मत प्राणवायु समान है लोकतंत्र को ज़िंदा रखने के लिये आवश्यक है।
दिगदिगंत- और क्या क्या ज़रूरी है लोकतंत्र के लिये ? मने सरकार विरोध के अलावा ?
डाक्टर सक्कल- लोकतंत्र के लिये जनता का होना जिसकी सेवा के लिये धरती पर लोकतंत्र पैदा हुआ है उतना ही ज़रूरी है जितना जनता की चुनी हुई सरकार के विरोधियों का होना । फिर जनता मे विशेषकर ग़रीब जनता का बड़ा हिस्सा होना भी निहायत ज़रूरी है । मिडिल क्लास भी चाहिये क्योंकि उसी वर्ग विशेष तो निर्भर है लोकतंत्र का जीना। कुछ अमीर तो हमेशा से थे हैं और रहेंगे लोकतंत्र पर नकेल रख उसे क़ाबू में रखने के लिये ।
दिगदिगंत- जी बहुत ख़ूब । पर सरकार को कैसा व्यवहार करना चाहिये विरोधियों के साथ ? और क्या करना चाहिये सरकारों को लोकतांत्रिक तरीक़े से ग़रीबी दूर करने के लिये ?
डाक्टर सक्कल- विरोधियों और शासक दलों की सोच और नीयत मे अब अंतर बहुत कम हो गया है । ज़माना बदल गया साहब ।देखिए कैसा नेता लोग चुने जाने के बाद इधर से उधर और उधर से इधर आते जाते रहते हैं । जैसे सबेरे टहलने निकलें हो आज इधर तो कल उधर। पर नेता नेता ही रहता है । चाहे जिधर भी हो। शिवसेना के प्रवक्ता को कांग्रेसी बनने में देर लगी क्या? समाजवादी का प्रवक्ता बीजेपी शरणम गच्छामि मंत्र पढ़ कर शुद्ध हो अब समाजवादी का विरोध करता है। हाँ वही समाजवादी नेता जो पहले बीजेपी को गरियाता था अब समाजवादी को गरियाता है।
द्रौपदी चीर हरण पर लिखे प्रसिद्ध कवित्त “नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है कि सारी ही कि नारी है कि नारी ही कि सारी है” में जैसे सारी और नारी के बीच अंतर न होने का शब्द चित्रण किया गया था लगभग वैसा ही गड्डमगड्ड विरोधियों और सरकारियों के बीच हो गया है। हाँ बोलने में डिबेट में चाहे टीवी पर हो या सड़क पर या सदन में बकभेद ज़रूर स्पष्ट दीखता है।
दिगदिगंत- बकभेद यानि ?
डाक्टर सक्कल – बकभेद नहीं जानते हैं। अरे जब सोच में भेद न हो और केवल बात करके भेद दिखाया जाये तो उसे बकभेद कहते हैं । राजनीतिक विमर्श मे जब सार्थक संवाद की जगह बतकही, बकवास, बतकुच्चन, बतफरोशी, बतफरेबी, बकचोदी आदि होने लगे तो अंतर दिखाने के लिये बकभेद किया जाता है ।
देखिये हम कहते हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है । गरीब, मध्यमवर्ग और धनाढ्य वर्ग सबका, सबके द्वारा और सबके लिये । अब गरीब कब धनाढ्यवर्गीय और मध्यवर्गीय को तभी भाता है? तभी न जब धनाढ्य और मध्यमवर्गीय को सहायक कामकाजी नौकर की ज़रूरत हो । गरीब भी मध्यमवर्ग और धनाढ्य वर्ग की श्रेणी में आना चाहता है । गरीब सबकी ज़रूरत है । और गरीब को सबकी । जनता मे सभी गरीब रह नहीं सकते । कुछ तो ग़रीबी रेखा को पार करेंगे ही ।
रहीम होते तो आज अपने दोहे को कुछ इस प्रकार लिखते,
रहिमन गरीब राखिये गरीब गये सब सून । गरीब गये ते होइ जइहै धनी, नेता, जनता सब टुन्न ।
आगे अगले अंक मे …
- The Celebrity Next Door
- Dr HB Joshi shares his views on the why, what and how of Vrikshamandir
- Meeting of former NDDB employees at Anand on 21/22 January 2023
- ईशोपनिषद
- खलबली