दुआ।
क्या शिकवा करें गुनहगारों का,
हम ही तो बेवफ़ाई झेल ना पाये।
पुकारा तो एक बार फिर था ज़माने ने,
हम ही गुमनामी के रास्ते से लौट ना पाए।
उम्र के इस पड़ाव पर, यादों का झरोखा धुँध हो चुका है,
ना पिछला कुछ याद, ना कल का कोई अंदेशा है।
डूबा हूँ सिर्फ़ आज में, अभी में, इस पल में,
क्यूँ की इसी में, दिल को सुकून है।
मेहर बनी रहे इसी तरह उपरवाले तेरी,
बाक़ी उम्र के लिए, बस यही दुआ है।
रश्मिकांत नागर
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Nagar saab your article on early days at Anand is superb. Enjoyed reading it