Vrikshamandir

Stories and Discussions on Human Development, Culture & Tradition | वृक्षमंदिर से कथा, संवाद एवं विमर्श विकास संस्कृति तथा परंपरा पर

फ्यूज बल्ब – एक कहानी

- डाक्टर भीमशंकर मनुबंश 

शहर मे एक पार्क हुआ करता था ।इस पार्क मे सुबह – शाम और महीने के तीसो दिन बुजुर्ग लोगों की महफिल जमा करती थी । ये बुजुर्ग लोग अलग – अलग पृष्ठभूमि से थे l कोई साधारण परिवार से तो कोई सम्पन्न परिवार से। लेकिन उम्र के इस पडाव मे पहुँच कर इनके मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्थितियों मे ज्यादा अंतर नही रह गया था । कमो- वेश बढ़ती उम्र के साथ – साथ इनकी मनोदशा एक जैसी ही हो गयी थी ।

अच्छी बात यह थी कि आपस मे मिलने जुलने से और दुख सुख की बातें बतियाने से मानसिक बोझ कुछ हलका हो जाया करता था l जन्म दिन और वर्षगांठ आदि के मौके पर मौज मस्ती भी हो जाया करती थी l इस तरह इन बुजुर्गों का समय अच्छा कट रहा था ।

फिर एक दिन अचानक और बिना किसी पूर्व जानकारी के एक नये बुजुर्ग का पदार्पण हुआ ।सभी ने इनका खुले दिल से स्वागत किया । लेकिन इन जनाब का खुद का व्यवहार और तरीके जो कि अभिज्यात वर्ग के थे, इनको सबके साथ घुलने मिलने मे बाधक हो रहे थे । यह बात नये आये बुजुर्ग भी महसूस कर रहे थे ।

लेकिन दशकों मे अर्जित संस्कार से उबर पाना उनके लिये मुश्किल हो रहा था ।

इनकी उपस्थिति के कारण बाकी बुजुर्गों को भी पूर्व की भाँति हँसने बोलने मे दिक्कत हो रही थी ।इस परिस्थिति से निबटने पर नये आये बुजुर्ग की अनुपस्थिति मे बराबर चर्चा होने लगी ।

लोगों ने पता लगाया कि नये बुजुर्ग ने इसी शहर के एक पाश कॉलोनी मे बडा सा फ्लैट लिया है और कुछ ही दिनों पहले यहाँ शिफ्ट किये हैं । पता यह भी लगा कि किसी ऊँचे पद से हाल ही मे सेवा निवृत हुए हैं । इनके कारण भारी हुए माहौल को पूर्ववत हल्का करना चूंकि जरूरी था इसीलिये एक बुजुर्ग ने ये जिम्मेवारी अपने पर ले ली । जिम्मेवारी लेने वाले बुजुर्ग काफी खुले दिल इंसान थे और अपने जिंदादिली के लिये भी जाने जाते थे ।

अब अगला भाग …..


एक सुबह नये बुजुर्ग के आ जाने पर कुछ बुजुर्ग उन्हें घेर कर बैठ गये ।सभी ने अपना अपना परिचय देना शुरू किया । ये सभी भी किसी न किसी ऊँचे पद से ही सेवा निवृत हुए थे । इन लोगों ने भी बताया कि कैसे इन्हे भी शुरू के दिनों मे काफी झिझक होती थी । लेकिन सब के साथ हिल मिल जाना मजबूरी थी । नही तो इस पार्क मे आ कर इस बुजुर्गों की टोली मे शामिल होने का कोई मतलब नहीं था । फिर वो बुजुर्ग जिन्होंने अगुआई की थी, ने बोलना शुरू किया l उन्होंने कहा कि ” भाई साहब, हम सब भी अपने जमाने मे चमकते सितारे थे । कोई ज्यादा चमक वाला तो कोई कम चमक वाला । या यों कहिये कि कोई 500 वाट वाला तो कोई 50 वाट वाला । कोई ट्यूब लाइट तो कोई ….. लेकिन अब हम सब का वजूद पद से हटने के बाद ‘ फ्यूज बल्ब ‘ जैसा है ।”


इतना सुनते ही एक जोरदार ठहाका लगा और इस ठहाके के साथ ही नये आये बुजुर्ग की भी ठमक जाती रही l


Loading

Powered by WordPress.com.

Discover more from Vrikshamandir

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading