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Stories and Discussions on Human Development, Culture & Tradition | वृक्षमंदिर से कथा, संवाद एवं विमर्श विकास संस्कृति तथा परंपरा पर

स्कूटर जानदार और सफर शानदार

फ़ोटो हिंदू बिज़नेस लाइन के सौजन्य से
डाक्टर भीमशंकर मनुबंश 

चलिये, आपको सिक्किम की खूबसूरत वादियों मे ले चलें l ‘सिक्किम’ मात्र दो वर्ष पूर्व तक जो एक अलग देश हुआ करता था l यानि, भारत का नवीनतम प्रदेश l चारों तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड, घने जंगल, लहराती पगडंडियां और कल कल करती नदियाँ l इतना ही नही l वहाँ के लोग  :  पुरुष, महिला, बच्चे, बूढे l सबके सब निश्च्छल, सरल और जीवंत l न आज की चिंता और न कल की फिक्र l खूबसूरती तो उन्हें विरासत मे मिली थी l दुकान मे ताला  …  नही भी लगाया तो चिंता नहीं, तो लोग ऐसे थे निष्कपट l

जी हाँ, मैंने कुछ बढा चढा कर नहीं लिखा l बात है उन दिनों की जब मेरी पोस्टिंग पहली बार सिक्किम मे हुई थी l मै पटना से ट्रांसफर हो कर आया था l   वर्ष था 1977 और जगह थी जोडेथांग, यानि ‘दो जुडे हुए गाँव’,  ‘मल्ली’ (नदी का नाम)  के दोनों तरफ एक एक l दूसरी ओर के गाँव का नाम था नया बाजार l एक और बात जो इस जगह को विशेष बनाती थी वह कि मशहूर हिल स्टेशन “दार्जिलिंग” की दूरी सडक मार्ग से मात्र 25 किलोमीटर l लेकिन as a crow fly, यानि वायु मार्ग से  इसकी दूरी कोई 2 – 3 किलोमीटर ही रही होगी l चौंकिये मत, यह सही है, कारण कि जोडेथांग तलहटी मे बसा था l Added beauty सुनेंगे तो आपका दिल भी वहाँ जाने को मचलने लगेगा l वह यूँ कि शाम होते ही दार्जिलिंग की चमक दमक यहीं से दिखायी देने लगती थी l तो हुआ न यह ‘सोने पर सुहागा’ l और बताएं, सिक्किम राज्य को पश्चिम बंगाल  से अलग करने वाली बस एक नदी मात्र थी l इस नदी के दूसरी तरफ सिंगला बाजार नाम की जगह थी जहाँ हम लोग कभी कभी वहाँ के साप्ताहिक बाजार से सब्ज़ी – फल आदि की खरीदारी करने जाते थे l और सुनिये, यह सिंगला बाजार  rope way (रस्सी मार्ग) से दार्जिलिंग से जुडा था l लेकिन यह मार्ग कोयला ढुलाई के लिए चलता था, हमारे और आपके यात्रा के लिये  नही  l

जोडेथांग की कहानी इसीलिये सुनाना पड़ा चूंकि इस स्कूटर की यात्रा भी सिक्किम से ही शुरू हुई थी l लेकिन अभी थोडा और आपको इंतजार करना होगा l हुआ ऐसा कि मैं लगभग दो वर्ष जोडेथांग मे रहा l वैसे तो इस पहाडी और छोटी सी जगह मे स्कूटर की कोई जरूरत थी नहीं और फिल्ड के काम काज के लिये प्रोजेक्ट की जीप भी उपलब्ध थी l फिर भी एक ललक कि मेरे पास भी एक स्कूटर हो l उस जमाने मे एक स्कूटर होना बडी बात होती थी l या यों कहिये कि a prized possession. 

उस जमाने मे अपने देश के अन्य राज्यों मे स्कूटर खरीदने के लिये एडवांस बुकिंग होती थी l रुकिए, मै और कुछ बताता हूँ l आज के जैसा नही कि एजेंसी वाले पीछे पडे रहते हैं l बेचने के लिये तरह तरह के स्कीम चलाते हैं l बैंक से भी EMI तक  तय करवा देते हैं l जी नही, वैसी बात तो तब सपने मे भी नही सोची जा सकती  थी l फिर क्या हकीकत था उन दिनों का  !!  तो सुनिये, एडवांस देने के बाद भी लम्बा इंतजार करना पड़ता था l साल डेढ साल का इंतज़ार तो मामूली बात   थी l लेकिन एक सिक्किम ही ऐसा प्रदेश था जहाँ ज्यादा इंतजार नहीं करना होता था l कुछ सप्ताह,  और लो आपका स्कूटर आ गया l था न अद्भुत  !  

तो पाठकों, अब क्या मैं अपना दुखडा आपको सुनाऊँ….. हुआ ऐसा कि मुझ से हो गई चूक l सिक्किम का एक मात्र बडा शहर जो इसकी राजधानी भी है, गंगतोक, तो स्कूटर की एजेंसी वहीं थी और मैं रहता था जोडेथांग मे l हालाँकि, गंगतोक बराबर ही आना जाना रहता था लेकिन यह सोच कर कि जब तक सिक्किम मे हूँ तब तक तो स्कूटर की जरूरत पडेगी नही, जब यहाँ से ट्रांस्फर होने वाला होगा तब स्कूटर ले लूंगा l इसी गफलत मे काम गडबडा गया l एक दिन अचानक से मेरे बॉस (श्री रमेश मकरन्दी) ने गंगतोक से फोन किया और मुझे बधाई दी कि मेरा प्रमोशन हो गया है l बात तो जरूर खुश होने की थी l उन्होंने यह भी बताया कि साथ मे मेरा ट्रांस्फर भी हो गया है और मुझे सिलिगुड़ी जाना है l लेकिन जिस बात से दिक्कत हुई वह थी NDDB मुख्यालय से आये आदेश का निचला पारा l आखिर NDDB की अपनी विशिष्ट शैली l मुझे तुरत सिलिगुड़ी मे रिपोर्ट करने का आदेश था और ट्रांजिट लीव बाद मे avail करने की बात लिखी गयी थी l लीजिये साहब, मै तो दूसरे ही दिन रिलीव होकर जोडेथांग से सिलिगुड़ी के लिये प्रस्थान कर गया l उस जमाने मे मार्चिंग आर्डर ऐसे ही मिला करता था और आप चू चपड भी नही कर सकते थे l


तो मित्रों, स्कूटर खरीदने की मेरी दिली ख्वाहिश पर इस तरह कुठाराघात हुआ l मै यह बताता चलूँ आप सब को कि मेरी पोस्टिंग अगर सिक्किम मे होती तो स्कूटर की बुकिंग मेरे ही नाम से होती जो सिक्किम से बाहर पोस्टिंग होने पर सम्भव नही था l

तो इस तरह स्कूटर खरीदने का सपना धरातल  पर नही उतर पाया,यह सपना सपना ही रह गया l 

अब आप सब को कुछ और दूर ले चलता हूँ, मित्रों ……


सिलिगुड़ी मे मेरी पोस्टिंग करीब एक साल मात्र की रही होगी कि दूसरा मार्चिंग आर्डर मुझे मिला l इस बार मेरी पोस्टिंग दूसरी बार पटना कर दी गयी l यह 1979 का वर्ष था l पटना मे उन दिनों मात्र एक ही आफिसर NDDB टीम मे रह गये थे l


यह समय था जब NDDB पटना मे एक बड़ी टीम बनाने की कबायद कर रही थी I इसी बड़ी टीम का मै भी एक हिस्सा बनता लेकिन ऊपरवाले, NDDB के टॉप ब्रासेज, को कुछ और ही मंज़ूर था l पटना आये एक महीना भी नही बीता था कि फिर एक मार्चिंग आर्डर l अब आप अच्छी तरह समझ सकते हैं कि उन दिनों कितना टफ लाइफ था प्रोजेक्ट मे काम करने वालों का l लेकिन मित्रों इस बार के ट्रांसफर से एक अच्छी बात यह हुई कि मेरे स्कूटर पाने की जो उत्कट इच्छा दबी रह गई थी वह पूरी होती दिखाई देने लगी l तो हुई न ‘a boon in disguise’ वाली कहावत चरितार्थ l

हुआ यों कि सिक्किम मे जो मेरे बॉस थे (मकरंदी साहब) उनका सिक्किम सरकार मे डेपुटेशन हो गया और उनकी पोस्टिंग सिक्किम मिल्क यूनियन के एम• डी• पद पर हो गयी l इस तरह जो NDDB के सिक्किम चीफ (टीम लीडर) की कुर्सी खाली हुई उसके लिये उत्तराधिकारी ढूंढा जाने लगा l प्रबंधन ने, मकरंदी साहब के सलाह पर, डा• मनुबंश को पटना से ट्रांसफर कर एक बार फिर सिक्किम मे पोस्टिंग कर दिया l लेकिन इस बार मेरी पुरानी जगह जोडेथांग नहीं बल्कि वहाँ की राजधानी, गंगतोक मे पोस्टिंग हुई l तो इस तरह prized possession, स्कूटर पाने का रास्ता प्रशस्त होता दिखायी देने लगा l 

चलिये, अब वापस फिर अपनी कहानी को ‘स्कूटर’ पर लाते हैं l तो पटना से रिलीव होकर एक बार फिर मै सिक्किम (गंगतोक) पहुँच गया l

वैसे गंगतोक तो जानी पहचानी ही जगह थी इसिलिए सेट्ल होने मे न देरी हुई और न ही कोई दिक्कत हुई l लाइफ कुछ ही दिनों मे रेगुलर चलने लगी l एक बार मै मौका चूक चुका था l क्या भरोसा कब फिर अचानक मार्चिंग ओर्डर मिल जाय l
इसीलिये पहला काम, आप समझ ही सकते हैं, मैने जो किया वह था स्कूटर बुक करने का l A great relief जो कहते हैं न, वही वाली फीलिंग मुझे मिली l और
फिर ज्यादा इंतजार नहीं करना पडा, मै भी एक शानदार, नये, चमचमाते क्रीम कलर के स्कूटर का प्राउड ओनर बन  गया l स्कूटर का मेक था BAJAJ SUPER लेकिन आज के न्यू नॉर्मल के हिसाब से तो फीलिंग सुपर से भी ऊपर की हो रही थी l कुछ ताम झाम भी लगा दिया था जिससे स्कूटर की रौनक और भी बढ गयी थी l लोगों ने बधाई देना शुरू कर दिया था जैसे कि यह कोई बडी उपलब्धि हो l तो साहब, आखिर यह prized possession का मालिक मै बन ही गया l कुछ दिनों मे इसका रेजिस्ट्रेशन भी हो गया और नंबर मिला SKM 6156.

SKM से एक बात याद आई l उन दिनों परिवहन व्यवस्था बहुत सीमित थी l लोकल आवागमन के लिये कोई सार्वजनिक साधन उपलब्ध नही था l मै गंगतोक की बात कर रहा हूँ l आम जन पैदल ही चला करते थे l गांव से भी लोग पगडंडियों पर ऊपर नीचे पैदल चल कर ही आते थे l लेकिन पूछने पर कभी नही बोलते थे कि पैदल चल कर आये हैं l बस उनका जुमला था ‘SKM 11’, समझे क्या – जी, वही ‘पैदल’ l

तो पाठकों, यह कथा तो स्कूटर पाने तक की यात्रा का वर्णन है, लेकिन इस स्कूटर की गौरवमय गाथा बहुत रोचक और लम्बी है जिसे मै “स्कूटर जानदार और सफर शानदार” के अगले अध्याय मे लिखूँगा, तब तक के लिये …..

🙏🏼🙏🏼🙏🏼


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One response to “स्कूटर जानदार और सफर शानदार”

  1. Dr SC Malhotra Avatar
    Dr SC Malhotra

    सिर्फ सकुटर ही नहीं, जनाब वहां तो कुकिंग गैस का नया कनेक्शन भी बहुत आसानी से मिलता था ।।
    बहुत किस्से हैं सिक्किम के 🤫.

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