समय है हमारी बूढ़ी माँ
देखा है सालो तक बदलते मौसमों को जिसने
अपनों को, अपने जनों को, हम सब बच्चों, लड़के लड़कियों,जवानों,अधेड़ों, बूढ़ों, सबको
वसंतों में ही नहीं वरन सर्दी, गर्मी, बरसात, पतझड़,
सभी मौसमों में संभाल, संजो कर रखा जिसने
समय है हमारी बूढ़ी माँ
अब जब अक्सर वह अपने भूत या अनजाने भविष्य में खो जाती है
हम सब से दूर न जाने कहाँ चली जाती है
लगता है हमारा समय ले कर गई है
फिर लौट भी आती है
हमें हमारे समय का अहसास दिला कहती है
समय का न आदि है न अंत है
समय था, है और रहेगा
पर अब समय
तुम्हारा है जब तक तुम हो
सभांल कर रखना समय को
फिर दूसरों को अपनी यादें दे कर मेरी तरह मेरे पास आ जाना
समय है हमारी बूढ़ी माँ
समय ही तो है हम सब जिसका न आदि है न अंत
समय है अनंत
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4 responses to “समय है हमारी बूढ़ी माँ”
Bahut achcha Laga aapane pure jivan ka sar samet liya hai
Thank you very much
Well described this part of life, poet Shail!
wow
wow.