संध्याकाल जीवन का

जीते है मरने के लिये हर क्षण होते व्यतीत वर्तमान में धुन भविष्य की गुनगुनाते पूर्वराग* होते वर्तमान में अतीत हुआ वह जिसे चाहा हुआ वह भी जो न चाहा मानते है अब होना था जो आशा और आकांक्षाओं के फेर में वह ही तो हुआ *पूर्वराग =Nostalgia

कथा-वार्ता:  ईश्वर पैसें दरिद्दर निकलें

"कथा-वार्ता:  ईश्वर पैसें दरिद्दर निकलें कल 'दीया दीवारी' थी। आज बुद्धू बो की पारी है! प्रात:काल ही उठ गया। दरिद्दर खेदा जा रहा था।माँ सूप पीटते हुए घर के कोने कोने से हँकाल रही थीं। आवाज करते हुए प्रार्थना कर रही थीं। यह प्रार्थना दुहराई जारही थी। -ईश्वर पैसें दरिद्दर निकलें- ईश्वर का वास हो,दरिद्र नारायण बाहर निकल … Continue reading कथा-वार्ता:  ईश्वर पैसें दरिद्दर निकलें