कथा-वार्ता:  ईश्वर पैसें दरिद्दर निकलें

“कथा-वार्ता:  ईश्वर पैसें दरिद्दर निकलें

कल ‘दीया दीवारी‘ थी

आज बुद्धू बो की पारी है! प्रात:काल ही उठ गया। दरिद्दर खेदा जा रहा था।माँ सूप पीटते हुए घर के कोने कोने से हँकाल रही थीं। आवाज करते हुए प्रार्थना कर रही थीं। यह प्रार्थना दुहराई जारही थी।

ईश्वर पैसें दरिद्दर निकलेंईश्वर का वास हो,दरिद्र नारायण बाहर निकल जाएँ। दरिद्र भी नारायण हैं।रात में दीप जले,पूजा हुई,खुशियाँ मनाई गयीं,राम राजा हुए।लक्ष्मी का वास हुआ।अब दरिद्रता का नाश हो।यह निर्धनता नहीं है। यह मतलब नहीं निकलना चाहिए कि हमारी गरीबी दूर हो गयी। निर्धनता और दरिद्रता में अंतर है।

निर्धनता में व्यक्ति का स्वाभिमान बना रहता है। दरिद्रता व्यक्ति की गरिमा को नष्ट कर देती है। उसका आत्मबल छीन लेती है। निर्धन होना अच्छा हो सकता हैदरिद्र होना कतई नहीं। राम राजा हुए हैं तो स्वाभिमान लौटा है। ऐसे में दरिद्रता कैसे रह सकती है। हमने उसे हँकाल दिया है।

— Read on yahansedekho.blogspot.com/2020/11/blog-post_15.html

Loading

Published by Vrikshamandir

A novice blogger who likes to read and write and share

%d bloggers like this: