संध्याकाल जीवन का

जीते है मरने के लिये

हर क्षण होते व्यतीत

वर्तमान में धुन भविष्य की

गुनगुनाते पूर्वराग*

होते वर्तमान में अतीत

हुआ वह जिसे चाहा

हुआ वह भी जो न चाहा

मानते है अब होना था जो

आशा और आकांक्षाओं के फेर में

वह ही तो हुआ

*पूर्वराग =Nostalgia



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