एक दिन पार्क के उस छोर पर जहां मैं अक्सर घूमने जाता हूँ, पत्थरों पर लिखे यह प्रेरणादायी शब्द दिखे। साधारणत: यह पार्क सूना ही रहता है । यहाँ से दूर कुछ लोग अकेले अथवा बच्चों या कुत्ते के साथ दीखते हैं पर इस छोर पर शायद ही कभी कोई मिला हो। एकांत में यहाँ बैठना अच्छा लगता है ।
शब्दों के अर्थ में बहुत झरोखे हैं, यारों झूठ के रंग भी अनोखे हैं
नितांत एकांत अच्छा लगता है। वृक्षमंदिर की याद दिला देता है। परिवेश वातावरण भले ही बदला हो पर शून्यता की अनुभूति तो हर जगह ऐकसजैसी होती है। फिर मन भी तो भटकता है । इन पत्थरों पर बैठ बड़ी सारी पुरानी यादें भी पुनर्जीवित हो जाती हैं ।ऐसे शब्द आपणी “ पुराणी” “सुसौटी “ “एनडीडीबी” की याद दिलाते हैं !
15 और 16 फरवरी, 2020 को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के लगभग 150 पूर्व कर्मचारियों के स्नेह मिलन का किया गया आयोजन था ।
सितंबर 2020 में इस आयोजन पर एक ब्लाग प्रकाशित किया गया था। वह दो दिन बन गये उत्सव एनडीडीबी में बिताए गए जीवन और बीते दिनों को सामूहिक रूप से पुन: याद करने के ।
उन डेढ़ सौ लोगों में से मै भी एक था।
फ़रवरी 2020 के उन दो दिनों के दौरान हम सब ने बहुत से संस्मरण और एनेकडोट ( उपाख्यान) साझा किये गये। जो पुरानी एनडीडीबी की संगठनात्मक संस्कृति ( आर्गेनाइजेशनल कल्चर) की विशेषताओं पर प्रकाश डालती हैं ।
विगत जीवन की हास्य विनोद भरी स्नेहिल स्मृतियों के अतिरिक्त, उन संस्मरणों और उपाख्यानों द्वारा पुरानी एनडीडीबी की संगठनात्मक संस्कृति की वह विशेषताएँ जो तब के कर्मचारियों को “अभाव” में भी और “अधिक” काम करने के लिए प्रेरित करती थीं, कार्य संपादन का वह एनडीडीबी छाप “नैतिक मानदंड” जो हममे से बहुतायत के लिये एनडीडीबी छोड़ने के बाद भी जीवन का एक हिस्सा बन गईं …और भी बहुत कुछ उजागर हुआ ।
यह हमारी दूसरी ऐसी बैठक थी ।पहली बैठक 2015 में आयोजित की गई थी।
एक और साल बीत गया ….
सन 2020 और अब तक का 2021 अजब साल रहे हैं। जीवन में ऊपर, नीचे, ख़ुशी, ग़म, सफलता, असफलता आदि का दौर तो चला ही करता है पर मेरे विगत जीवन की स्मृतियों में शायद ही कोई ऐसा साल रहा हो जो वैश्विक मानवी त्रासदी देने के मामले कोरोना साल 2020 2021 की बराबरी कर सकता हो । बीमारी, महामारी, लाकडाउन, गृहबंदी, आने जाने पर मिलने जुलने पर रोक ..क्या क्या न किया कोरोना ने । फ़रवरी 2020 मे आणंद में आयोजित स्नेह मिलन एक अपवाद था। इतने सारे पूर्व सहकर्मियों से इतने सालो बाद मिलना बहुत सुखद अनुभव रहा । धन्यवाद “कोरोना श्री 2020” साल का ! आपने कम से कम इस आयोजन में व्यवधान तो न डाला ।
सन 2000 के बाद हर साल कुछ दिन अपने गाँव जा कर बिताता था । कोरोना 2020 में पहली बार ऐसा हुआ कि मै गाँव न जा सका। भारत के बाहर लगातार बारह महीने रहने का रिकार्ड भी बन जायेगा 11 जुंलाई2021 को।
मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि मुझे दोनों आयोजनों को फेसिलिटेट करने का अवसर मिला ।
निहित स्वार्थों, नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के प्रखर विरोध के बीच हमारी एनडीडीबी के पूर्व कर्मचारियों के द्वारा लिखे गये सामूहिक संघर्ष और सफलता असफलता के बहुत से संस्मरण और एनेकडोटस इस बेब साइट पर उपलब्ध हैं ।
आगे आने वाले दिनों में खट्टे, मीठे , गुदगुदाते, हँसाते बीते दिनों की सफलताओं और असफलताओं की याद दिलाते और भी संस्मरण एनेकडोटस लिखे जायेंगे और यहाँ प्रकाशित होंगें !
यह बेव साइट अभी अपूर्ण है । काम प्रगति पर है ।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न देना इसे ज्वाला फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो आए मेरी मधुशाला ।
~ हरिवंश राय बच्चन
बदले लोग बदले तौर तरीक़े काम करने के सलीके
बहुत कुछ बदला पर कुछ रिवाज ना बदले अब भी पढ़ते हैं पहले की तरह गद्दीनशीनों के पियादे अपने मेहरबाँ की शान में वैसे ही क़सीदे
~ अज्ञात
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3 responses to “कहाँ गये वह दिन !”
शैल बाबू,
आप ने संस्मरणों को अकिंत कर अतीत में जाने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया हैं । फोटो देखकर लगता है कि रेत के थरातल से काफी पानी बह चुका है…. निशां सब कुछ ब्यां कर रहे हैं ।।
धन्यवाद ।।
डा॰ एस सी मल्होत्रा
पत्थर पर लिखे शब्द धुंधले तो ज़रूर होते हैं पर बहुत मुश्किल से मिटते है ।
हा यह बात दीगर है कि यदि कुछ लोग पत्थर को ही तोड़ डाले तो अक्षरों के मिटने में पत्थर का दोष नहीं है।
पत्थर संस्था, उन पर अंकित शब्द संस्था के मूल्य,पानी काल है बहता ही रहता है !
मूल्यों को जीवित रखने के लिये समय समय से बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रख के संस्था के पुनर्जीवन का प्रयास आवश्यक है । नहीं तो उन्हीं पत्थरों का प्रयोग कर दूसरा निर्माण किया जाता सकता है और तब उन पत्थरों पर लिखे शब्द अपना मूल अर्थ खो देते हैं ।सवाल है उन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का । अगर हम प्रतिबद्ध है तो नये निर्माण में भी वह पुराने मूल्य बरकारार रहेंगे ।
अच्छा सुझाव पर…..
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.बहुत कठिन है डगर पनघट की 🤗
नमस्कार 🙏