~ डाक्टर वीपी सिंह

औरत हूँ
औरत हूँ, तुम्हारी कोई तीज त्यौहार नहीं,
जो साल में एक दो बार मानो और मनाओ.
औरत हूँ, बस्ती से दूर कोई मस्त सराय नहीं,
जहाँ जब थके मांदे हो तो सुस्ताने आ जाओ.
औरत हूँ, कोई गीता कुरआन की किताब नहीं,
जब अक्ल और ईमान को तरसो तभी मुझे पढ़ो.
औरत हूँ, तुम्हारे वजूद की नौ मंजिला मीनार हूँ,
खुदा, समंदर, परबत देखना हो, तो आओ चढ़ो.
औरत हूँ, ओउम् की ध्वनि, ईश्वर का नाद हूँ,
तुम्हारे सीने में धढ़कती हूँ, बूझना है तो बूझो.
औरत हूँ औरत ही रहने दो, बुतपरस्ती न करो,
मेरे नाम का अब कोई नया मजहब मत चलाओ.
औरत हूँ तुम्हारी कोई तीज त्यौहार नहीं …
वीरेन
8 मार्च 2021
मेरा संपर्क डाक्टर वीपी सिंह से गुड़गाँव में हुआ। मै एनडीडीबी छोड़ ज़िंदगी के एक नये अनजान दौर में प्रवेश ले रहा था । हमारी पहली मुलाकात में ही अंतरंगता का जो समा बंधा जल्द ही मित्रता में बदल गया जिसमें दूरियों का कोई मतलब नही रहता है। अपने बारे में रोब की भाषा अंग्रेज़ी में डाक्टर सिंह ने LinkedIn पर जो खुदबयानी की है उसका स्क्रीन शाट नीचे दिया गया है।

अपने को egoist या अहंकारी , अभिमानी कहने वाले डाक्टर सिंह यारों के यार हैं मेरी दृष्टि में ! और कुछ भी हों पर अहंकारी नहीं हैं । अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्होंने यह कविता व्हाटसएप पर भेजी थी । उनकी सहमति से इसे यहाँ वृक्षमंदिर पर प्रकाशित कर रहा हूँ । आज जब हर चीज के लिये एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का चलन है उस संदर्भ में इस कविता के कथ्य का अंदाज़ेबयां कुछ अलग है ।आशा है आप सबमें कुछ को अवश्य पसंद आयेगी। डाक्टर सिंह आगे और भी लिखेंगे वृक्षमंदिर पर ।
- The Celebrity Next Door
- Dr HB Joshi shares his views on the why, what and how of Vrikshamandir
- Meeting of former NDDB employees at Anand on 21/22 January 2023
- ईशोपनिषद
- खलबली
Yeh Dr Singh hain kaun ?
Yeh Dr Singh hain kaun ?
Will write to you Dr Malhotra