अनुभूति- 3

मिथिलेश कुमार सिन्हा
मिथिलेश कुमार सिन्हा

भला हो इक्कीसवीं सदी का । डाकिया आया, तार वाला आया या पड़ोस में या खुद के घर पर फ़ोन आया वाला जमाना लद गया । अब तो यार, दोस्त, परिवार के लोगों से फ़ोन,इमेल, व्हाटसएप आदि से हम चाहे कहाँ भी हो गाहे-बगाहे ज़रूरत, बे ज़रूरत संपर्क बना रहता है।  

भाई “एम के” और मेरे साथ भी ऐसा ही है । जब मैं सन् २००० में आणंद छोड़ गुड़गाँव का रहेवासी बना “एम के” आणंद में ही थे। फ़ोन पर संपर्क हो जाता था। कोरोना काल २०२० में एक फ़ोन वार्ता से पता चला कि वह अब हरिद्वार में गंगा तट पर निवास करते हैं। मै केनेडा आ गया था। मैंने एक दिन “एम के” की हिंदी में लिखी एक पोस्ट “लिंक्डइन” पर पढ़ी ।मन को छू गई। पढ़ तो मैं रहा था पर लगता था जैसे उनका लिखा मुझसे बतिया रहा हो।वहीं से शुरू हुई बतकही के फलस्वरूप और उनकी सहमति से इस लेख शृंखला का प्रकाशन संभव हो सका है।


ख़ुशी क्या होती है ?

उम्र की  इतनी लम्बी चौड़ी चादर पर जब ज़िन्दगी करवट लेती है, तो हर गलियारे, नुक्कड़, हाइवे, ब्रौडवे, क्रौसरोड पर गुजारे या रुके हुये पल, चेहरे, यादे, और पता नही क्या क्या हरकतें अंगड़ाइयां लेने लगती हैं।

कुछ मचलती है, कुछ इठलाती है, कुछ नोक झोंक करती है, कुछ मुंह चिढ़ाती है, कुछ बस कुरेद कर चली जाती हैं। 


कितना सीखा, कितना किसी ने सिखाया, यह गणित समझ में ही नहीं आया।

मेरे जैसे शायद और भी होंगे, नही जानता।

इन सभी उपलब्थियों के वावज़ूद कुछ सवाल अभी भी मुंह बाए सामने खड़े रहते है। कुछ उत्तर नही मिल पाया।

पता नही मिलेगा भी या नहीं।

एक बेचैनी और एक सुकून का कौकटेल लिए अपने को टटोलता हूँ। 

आज, न जाने क्यों, ऐसा लगा कि अपनों के बीच इस सवाल को रखूं।

शायद कोइ मरहम मिले। 


सवाल है, खुशी की परिभाषा क्या होती है ?

क्या संतो, आम आदमी, सीरियल क्राइम कमीटर, सबों की परिभाषा एक होती है या हो सकती है? 

बैक टू स्कव्यार वन की परिस्थिति में हूं!


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