परिभाषाओं के पीछे परेशान मैने सुख या खुशी की परिभाषा के लिए एक पोस्ट लिखा था। इस साइट पर देखा तो गुदगुदी हुइ। या यूं कहें कि खुजली हुई।
हरिद्वार में हूं, बहुत कुछ देखने को सीखने को मिला।

अभी दो दिन पहले एक हजार से ज्यादा युवक, अपना घर, परिवार छोड़ कर नागा पंथ में शामिल हो गये। कपड़े उतार कर फेंक दिये, सारे बाल उतरवा दिये, एक सफेद लंगोट बांध ली, गंगा में स्नान किया, ललाट पर हल्दी रोली की चौड़ी लकीर लगाई, और बस टोली में शामिल हो गये। सब के सब अच्छे घर से।
जो प्रश्न मेरे दिमाग में घिरनी बन कर सतत घूम रहा है, वह है “खुशी किसे हुई,जो नागा बने या जिन्होंने इतने लोगों को नागा बनाया “।सुख किसे मिला। किसी से पूछा नही, नही तो मुझे भी उसी टोली मे मिला देते।
लेकिन प्रश्न मुंह बाए खड़ा है।
कोइ मदद। कोई अपना।
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