ज़मीर का सफ़र होता है जनाज़े तक

उम्र के किसी पड़ाव पर
जब अहसास होता है
किसकी चली है
जो मेरी चलेगी

तब समय थम जाता है
बोलता नहीं
अनकहे संवाद
बिनकहे होते हैं

ज़मीर से निकली
अनुभूतियाँ
नि:शब्द शब्दों में ढल
जनाज़े तक साथ रहती हैं


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