कल तक ऑफिसों में अपने कामों की डींगे हाँकते थे, थोड़े को बढ़ा-चढ़ा कर बखानते थे अभी कल की ही बात लगती है, बस ये पिछली ही रात लगती है. जब ज्वाइन किया था हम सबने, एक सपने की सौगात लगती है
Month: July 2021
Fathers Day 2021
On Father’s Day I had received an email from MK Sinha sharing a message that he had posted on LinkedIn. “आज सुबह, इन्डियन स्टैन्डर्ड टाईम के करीब पांच बजे, जब अपनी रोज की रूटीन के अनुसार , अपने परिचितों, दोस्तों, रिश्तेदारों को मेसेज देने अपना व्हाटसएप खोलो तो फादर्स डे की शुभकामनाओं के मेसेज भरे पड़े थे। एक अज़ीब सी इन्टेन्स, डिप्रेस्सिव माइन्डब्लाक सिंड्रोम में चला गया। सोचने लगा कि रोज जो मै पितृदेवो भव, मातृ देवो भव कह कर दिन की शुरूआत करता हूं वह कहीं कोई बड़ी भूल तो नही हो गई। कहीं मेरे पिता हम से दूर तो नही हो गए। ये कैसी बिडम्बना है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लोग मुझे बता रहे है कि मेरा भी कोई बाप, फादर, है और मुझे इस दिन उसे याद करना चाहिए। जैसे बाकी सारी ज़िन्दगी के दिन उस से कोई रिश्ता नहीं । अपने आप को बैकवर्ड समझने लगा। आउट आफ डेट। एक्सपायरी डेट के करीब। लेकिन सही समय पर मेरी आत्मा के एक झंटाटेदार तमाचे ने सही रास्ते पर ला दिया। मेरा बाप, मेरा फादर, मेरी आत्मा मे हर रोज हर सांस मे मेरे साथ रहता है। कोई याद दिलाए, न दिलाए।” I too have been receiving and forwarding Father’s Day messages both images as well as video clips to friends and … Continue reading Fathers Day 2021
1992 SCAM -the Ostrich style in the banks
R Ganesh I met Ganeshji not in the century that I was born but had to wait for the onset of the new millennium plus almost eight years for the planets to synchronise and be at the right position to create a favourable grah dasha. Ganesh ji a prolific blogger, banker, company secretary, connoisseur of … Continue reading 1992 SCAM -the Ostrich style in the banks
अनुभूति -१०
मिथिलेश कुमार सिन्हा भला हो इक्कीसवीं सदी का । डाकिया आया, तार वाला आया या पड़ोस में या खुद के घर पर फ़ोन आया वाला जमाना लद गया । अब तो यार, दोस्त, परिवार के लोगों से फ़ोन,इमेल, व्हाटसएप आदि से हम चाहे कहाँ भी हो गाहे-बगाहे ज़रूरत, बे ज़रूरत संपर्क बना रहता है। भाई “एम … Continue reading अनुभूति -१०
Two full moons
Sharing Hindi translation of a poem Behind the Moon by Vinita Agrawal from her Book Two Full Moons “मुझे अपने बारे में सच्ची अनुभूति तभी होती है जब मैं असहनीय रूप से दुखी होता हूँ।" ~ फ्रांज काफ्का चाँद के पीछे चाँद, तुम्हारे शांत मुखौटे के पीछे क्या मैं छिप सकता हूँ ? अपने बंद … Continue reading Two full moons