
करीब दो वर्षो से हरिद्वार में हूँ।
कितने लोगों से मिला। कितने तरह के लोगों से मिला ।
जीवन, सुख, प्राप्ति, दुख, उपलब्धि, क्षय, आनन्द, क्षोभ सब की अलग अलग परिभाषा।
अपना अपना ठोस विश्वास।
सब सही या सब गलत। निर्णय कौन करे।
नो थर्ड अम्पायर, नो मैच रेफरी।
इस संदर्भ मे कुछ फोटोग्राफ पोस्ट कर रहा हूँ।

यह फोटोग्राफ एक ऐसे व्यक्ति का है जिन्होने वर्षों बर्फ की कन्दरा मे रहने के फलस्वरूप अपने एक पैर का आधा हिस्सा और दूसरे तलवे का आधा फ़्रॉस्ट बाईट से गंवा दिया।
लेकिन चेहरे पर हंसी और ताजगी।


दूसरा फोटोग्राफ एक ऐसे व्यक्ति का है जो दोनो पैर से लाचार।
एक स्कूटी को तिपहिया बना कर अपने घर मे कन्वर्ट कर दिये।
हर रोज, बिना नागा गंगा स्नान करने सुबह सुबह आते हैं ।


तीसरा फोटोग्राफ एक ऐसे व्यक्ति का है जिसने घाट पर नहाने के लिए लगी तीन चार जंजीरों को इकट्ठा कर सोने वाला झूला बना लिया है ।
वह घंटो उसी पर सोते हैं और गंगा जी की धार मे आधा डूबे मस्त पड़े रहते है।

ऐसे अनेक, न समझ मे आने वाले दृष्य हर रोज दिखते है, अनुभव करने को मिलते है । अन्दर से कुरेद जाते है। प्रश्न उठाते है।
क्या यह ज़िन्दगी से भागे हुए लोग है ? अथवा ज़िन्दगी को समझ पाए लोग ?
सुख को समझ गये लोग है दुख को लात मार कर भगा देने वाले लोग ?
जो भी हो है सब बस अपने आप मे मस्त।दुनिया और दुनियादारी गई भाड़ मे।
क्या मरने के पहले इन्होने मोक्ष को पहचान लिया है ?
ज़िंदगी के प्रति इनका नज़रिया क्या है ? इनकी समझ से ज़िन्दगी की परिभाषा क्या है ?
रोज देखता हूं, किसी किसी से मिलता हूँ, बाते करता हँ।फिर भी हाथ मे लगा जीरो।
नही समझ पाया। न अपने को, न ज़िन्दगी को।
बस एक एन्डलेस्ह, बौटमलेस्ह अनुभूति।
एक अंतहीन अनुभूति, अज्ञात गहराई की ।

मै देखूँ तो छ:, तू देखे तो नौ ।
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