सेवानिवृत्त
२ जुलाई २०२१ को डाक्टर मलहोत्रा ने मुझे यह व्हाटसऐप फ़ॉरवर्ड भेजा था, OPT मतलब ओपी टंडन । फिर यह ब्लाग ड्राफ़्ट बन कर ही रह गया था । आज पोस्ट कर रहा हूँ
हम सब रिटायर हो गयें हैं आरियों से बाहर हो गये हैं
कल तक ऑफिसों में अपने कामों की
डींगे हाँकते थे,
थोड़े को बढ़ा-चढ़ा कर बखानते थे
अभी कल की ही बात लगती है,
बस ये पिछली ही रात लगती है.
जब ज्वाइन किया था हम सबने,
एक सपने की सौगात लगती है
कैसे वो दिन थे, गुजर गये
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हम कितनी ही ज़ल्दी बदल गये हैं.
कल के हम सजीले, छबीले,
आज झुर्रियों से, भर गये हैं
वो काले से कजरारे केश, हुए श्वेत वर्ण, बदल के भेष. हम स्कूटर ख़ूब चलाते थे, गाँवों में, कस्बों में, छोटे शहरों में अलख़ जगाते थे. साइकिल से शुरू किया सफर कार पर पहुँचने का सुख मनाते थे. राई से पर्वत बनने का अलख जगाते थे. इक-दूजे की दिक्कत में हम, ख़ुद ही दिल से लग जाते थे.
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पर जाने कैसे ये युग बीत गया,
कैसे अपना यौवन छिन गया,
अपने सपनों का यह आँगन,
नयनों की झड़ी से भीग गया
टायर्ड हुए बिना ही अपन, सारे यार रिटायर हो ही गये, कुछ तो असमय ही भगवान को प्यारे हो गये
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पर यारों … एक निवेदन है,
हृदय का यह प्रतिवेदन है,
वो जोश और वो शान अमर रखना, निज स्वाभिमान प्रखर रखना. हो सके तो मुस्कराहट बाँट लेना
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नातों में कुछ सरसराहट छाँट रखना.
नीरस-सी हो चली है, ज़िंदगी बहुत,
थोड़ी-सी इसमें शरारत बाँट लेना
जहां भी देखो , ग़म पसरा है
थोड़ी-सी बातों में हरारत बाँट लेना
शरीके ग़म होना इक-दूजे के
थोड़ी-सी अपनों में इबादत बाँट लेना
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हैं हम सब सेवानिवृत्त कार्य-कलापों से,
पर सामाजिक जीवन में
अपनी ज्योति हमेशा प्रखर रखना.
व्यक्तिगत मिलन भले न हो सके,
पर सम्बन्धों में जीवन्तता बनाए रखना
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