अनुभूति -११

मिथिलेश कुमार सिन्हा
मिथिलेश कुमार सिन्हा

भला हो इक्कीसवीं सदी का । डाकिया आया, तार वाला आया या पड़ोस में या खुद के घर पर फ़ोन आया वाला जमाना लद गया । अब तो यार, दोस्त, परिवार के लोगों से फ़ोन,इमेल, व्हाटसएप आदि से हम चाहे कहाँ भी हो गाहे-बगाहे ज़रूरत, बे ज़रूरत संपर्क बना रहता है।  

भाई “एम के” और मेरे साथ भी ऐसा ही है । जब मैं सन् २००० में आणंद छोड़ गुड़गाँव का रहेवासी बना “एम के” आणंद में ही थे। फ़ोन पर संपर्क हो जाता था। कोरोना काल २०२० में एक फ़ोन वार्ता से पता चला कि वह अब हरिद्वार में गंगा तट पर निवास करते हैं। मै केनेडा आ गया था। मैंने एक दिन “एम के” की हिंदी में लिखी एक पोस्ट “लिंक्डइन” पर पढ़ी ।मन को छू गई। पढ़ तो मैं रहा था पर लगता था जैसे उनका लिखा मुझसे बतिया रहा हो।वहीं से शुरू हुई बतकही के फलस्वरूप और उनकी सहमति से इस लेख शृंखला का प्रकाशन संभव हो सका है।

अपने अन्दर की कालीन, अकेले, निशान्त क्षणों मे एक बिल्कुल जानी पहचानी, अपनी सी आवाज दस्तक देती है!

रिर्भवरेटिंग इको। अजीब सी गूंजती आवाज ! चौंकता नहीं हूं, जाग जाता हूँ।

उम्र के साथ साथ बढ़ती गई ये कालीन तो अपनी ही है। उम्र बढ़ती गई, यह भी बढ़ती गई। कभी भी मुझे सर से पांव तक ढकने मे कोताही नही की।

ज़ख्मों, नश्तरों और नासूरों को संजो कर, उन्हे हमेशा बैकग्राउंड में रख कर ये बूटेदार, नक्काशीदार,, मादक और मनमोहक करिश्मा मेरे अन्दर पनपता रहा खुशबू और खुशियां एक्सपोज़ करते हुए।

अजीब और नेहायत हमदर्द है यह कालीन। सारे दुख दर्दों को अन्डर द कारपेट करने में एक्सपर्ट।

बातें होती है इस हमसफर से, अकेले मे। कभी यह मुझे दुत्कारता है, कभी मैं इसे सराहता हूँ। नोक झोंक चलती है। कभी यह ऊंघ जाने को प्रीटेन्ड करता है तो कभी मैं सोने का बहाना।

दोनो जानते है कि हम एक दूसरे को छलने की कोशिश कर रहे हैं,फिर भी यह नाटक बदस्तूर चल रहा है। और फिर एक अजीब सा सवाल मुह बाए खड़ा हो जाता है।

क्या ऐसी अनुभूति सिर्फ मुझे होती है या इन्सान की सामान्य नियति है, कहानी है ? कोई जवाब नही मिलता।

और तब यह सोंच कर सो जाता हूँ कि जिस अनमोल निधि ने, जिस समर्पित अनुभूति ने सारी ज़िन्दगी मेरे अन्दर घर बना कर मेरे साथ रह कर इतनी वफादारी की है, उससे मै पराया होने की गद्दारी कैसे कर सकता हूँ। 

सम्भव हो सब इसी दौर से गुज़र रहे हों। मानना, न मानना अपना अपना चयन। 

अनुभूति हमेशा बिलकुल पर्सनल प्रौपर्टी रही है। निजी संपत्ति …. हर एक की अपनी अपनी ..


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Published by Vrikshamandir

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