भला हो इक्कीसवीं सदी का । डाकिया आया, तार वाला आया या पड़ोस में या खुद के घर पर फ़ोन आया वाला जमाना लद गया । अब तो यार, दोस्त, परिवार के लोगों से फ़ोन,इमेल, व्हाटसएप आदि से हम चाहे कहाँ भी हो गाहे-बगाहे ज़रूरत, बे ज़रूरत संपर्क बना रहता है। भाई “एम के” और मेरे साथ भी ऐसा ही है । जब मैं सन् २००० में आणंद छोड़ गुड़गाँव का रहेवासी बना “एम के” आणंद में ही थे। फ़ोन पर संपर्क हो जाता था। कोरोना काल २०२० में एक फ़ोन वार्ता से पता चला कि वह अब हरिद्वार में गंगा तट पर निवास करते हैं। मै केनेडा आ गया था। मैंने एक दिन “एम के” की हिंदी में लिखी एक पोस्ट “लिंक्डइन” पर पढ़ी ।मन को छू गई। पढ़ तो मैं रहा था पर लगता था जैसे उनका लिखा मुझसे बतिया रहा हो।वहीं से शुरू हुई बतकही के फलस्वरूप और उनकी सहमति से इस लेख शृंखला का प्रकाशन संभव हो सका है।



आज से करीब पचास साल पहले मै अपने जन्म स्थान को छोड़ कर आनंद, गुजरात चला आया।
मूलतः बिहार का ।
आनन्द में ही एक कसबे मे लोन लेकर घर बनाया। बच्चों की पढ़ाई, शादी वहीं हुई। जब हम इस घर मे आए, हमारे आस पास सिर्फ वहां के परा मे रहने वाले स्थानीय परिवार के लोग थे। अजीब सा लगता था। बहुत ही सौहार्दपूर्ण लोग। । उनके छोटे छोटे बच्चे पढ़ने आते। एक अजीब परिपाटी देखने को मिली।
स्वाभाविक नाम से किसी को बुलाया जाता। प्रकाश, पका हो जाते, विनीत, बोपला, शान्ति शान्ता, यशोद जस्सी और न जाने कौन कौन और कैसे कैसे।
सब हमारे यहाँ आते और घर बाहर की बाते होती। कभी नही लगा हम बाहर के है और वे पराए।
इन्ही परिवारों मे एक नटू भाई का परिवार। पत्नी का नाम यशोदा, जस्सी बेन। हमारे परिवार के हर सदस्य से बाते करना उनका हाल चाल पूछना।
लेकिन मेरी पत्नी से बेपनाह आत्मीयता। रात बिरात जब भी कोई बात करनी हो, आवाज दे देती, बेन, हू जस्सी, आव्यूं छूं। और बस बाते शुरू ।
मेरी पत्नी बीमार पड़ीं, रोज आ कर हाल पूछ जाना। इधर उनके परिवार को जब भी कोई तकलीफ हुई, बेन, मेरी पत्नी हाजिर।
हर पूर्णिमा को अम्बा जी के मन्दिर जाती और बिना पूछे या कहे हमारे लिए प्रसाद लाती, बेन सारू थयी जाए न, एटला माटे, बीजू कयी नयी।
मेरे पास आती, बैठती और दुनिया भर की बाते।। चालीस साल से हमारा और जस्सीबेन का सम्बन्ध इसी क्रम से चलता आ रहा है।
मैं अब हरिद्वार आ गया।उन्हे बिना बताए।
मेरे बेटे बहू से भर पेट शिकायत। साहेब खोटो कीधो, आम ने आम जता रह्या ।आवशे तो पूछी शूं।
अभी मै आनन्द गया था। एक दिन जस्सीबेन आ गयी।
साहेब, आ नहीं चाले।
तमे जता रहो, अणे मने नही बताव्या। आदि से अन्त तक की आत्मीय बातें। दुख सुख, शिकायत की बातें। ढेर सारी बेबाक बाते। मैने मजाक में कहा जस्सी बेन हू तमारो एक फोटो पाड़ी लऊ छूँ।
कल हम दोनो मे कोई रहे, न रहे।
एक फोटो लिया।
बोली, साहेब उभा रहो तमारे आगे, माथा उपर आंचल ना होए तो लोको शूं केहशे।
क्या है उनका मुझ से रिश्ता। क्यो इतनी आत्मीयता। नही समझ पाया। चालीस साल।
अपने को बहलाने के लिए बस कुछ कह देते है।
शायद अनुभूति इसी को कहते होंगे।
जस्सीबेन के दो फोटो भेज रहा हू।
शायद ये कोई जवाब दे दे।
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