
रक्तबीज
पिठ्ठू हटा किया दुश्मन गद्दीनशीन,
अजब किया अमरीका तैने किया ग़ज़ब।
दुश्मनों बीच कूद कथित आलमी अमन के लिए,
बनाये और बेचे तैने हथियार ग़ज़ब ग़ज़ब।
बनते रहे “चचा” दुनिया में अमन के लंबरदार तेरे सारे सदर,
भूलेगी नहीं प्रताड़ित दुनिया,
बाप बेटे बुश, ओबामा ट्रंप और “वोक” बाइड्न को।
मारे तूने लाखों निर्दोष लोग बारम्बार,
पर मरे तो तेरे भी सैनिक हज़ार हज़ार।
करेगा क्या अब भी दुनिया में तू अमन की लंबरदारी?
अफ़ग़ानी आतंकियों से खा मार, क्या आई कुछ समझदारी?
किसके दम पर?
डालर और विध्वंस्कारी हथियारों के व्यापार के दम पर?
अपने बिगड़े उच्छृखल “वोक” बच्चों या रिफ्फूजियों के बच्चों के दम पर?
या मानवाधिकार, जमहूरियत, की झूठी दुहाईंयां देकर?
शापित है रे तू अमरीका,
घोंट घोंट गला हथियाई ज़मीन तूने अमरीका के मूल वासियोँ की,
फिर लाकर गुलाम दूर अफ़्रीका से, दुकान अपनी सजाई।
बकवास करता है तू मानवाधिकार अवामी जमहूरियत की दे दुहाई
रहने दे धन्नो, न हो पायेगी तुझसे अब दुनिया की चौधराई।
उखाड़ सकता है तो उखाड़,
और कुछ नहीं तो उँगली ही उखाड़ कर दिखा चीन की, इस्लामी आतंकवाद की,
दोनों को तो बनाया तो तूने ही ना,
अपने धनबल और नौजवानों के रक्त से सींच,
तेरे ही रक्त के है दोनों बीज।
श्री रश्मि कांत नागर के सहयोग के लिये आभार ~ वृक्षमंदिर
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