जिंदगी का समंदर

काल था, है, और  रहेगा

वर्तमान को भूत बना भविष्य निगल जाता  है काल

जीवन के जीवन की शक्ति है काल

अज्ञात होता है  जीव का काल जीवन का जीवन,  जीव की ज़िंदगी से करता है खिलवाड़ 

लहरें  उठती हैं ज़िंदगी के समंदर  में अकारणअनजानेअनायास

कुछ उछलतीउफनतीइठलातीबलखाती कुछ दुबलीपतलीमरियल सी सुस्त 

हो जाती है सब ख़त्म, नियति जो है इनकी j

पर ख़त्म हुई लहरें भी बनी रहती हैं समंदर का हिस्सा , बन कर शायद कोई और लहर

क्या कोई फ़र्क़ पड़ता है समंदर को 

लहर तो होती है समंदर की 

पर लहर का समंदर नहीं होता


समुंदर की लहरें

या

लहरों का समुंदर

Loading

Published by Vrikshamandir

A novice blogger who likes to read and write and share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: