



यह लेख अपने आप मे एक लेख नही वरन एक पत्र से निकली सूझ का नतीजा है । पत्र तो लिखा गया। जिसको भेजना था उन्हे भेज भी दिया गया । पर मन मे यह विचार उठा क्यो न उस पत्र को एक लेख मे परिवर्तित किया जाय। जिन आदरणीय महाशय को वह पत्र लिखा गया था, उनका छद्म नाम “बिहार के लाला” रखा गया है।
प्रिय भाइयों और बहनों, या बतर्ज अटल जी, देवियों और सज्जनों,
जंबूद्वीप के भारत खंड के गुर्जर प्रदेश वासी “बिहार के लाला” को “गोरखपुर के बाबू” का पाताल लोक के केनेडा नामचीन देश के टोरोंटो शहर से सादर नमस्कार और परिवार के अन्य लोगों को यथोचित प्रणाम आशीर्वाद पहुँचे ।
बिहार के लाला का विशेष उल्लेख इस सार्वजनिक पत्र में इसलिये ज़रूरी लगा क्योंकि उन्होंने बहुत दिनों बाद हमें एक पत्र लिखा और उस पत्र के साथ भेजी एक बैठक का वृत्तांत।
बैठक का वृतांत पढ़ भविष्य के प्रति आशा की मात्रा में भरपूर इज़ाफ़ा हुआ। एक तरह से कहें तो मन गद गद हुआ।
बचपन और जवानी में भी हमारे पिता जी (बाबूजी) “मनमोदक” खिलाया करते थे ।फ़ीलिंग कुछ वैसी ही हुई।
बाबूजी के मन मोदक हम सब बच्चे बड़े मन से सुनते थे। भाग भी लेते थे, बढ़ चढ़ कर। मन के मोदक उदर पूर्ति हेतु थोड़े ही होते थे। मन मोदक तो होते थे केवल मन को बहलाने का साधन। कल्पना, भविष्य, कुतूहल, क्या यह भी हो सकता है के बारे में ? मन बहल जाता था। बिहार के लाला ने घोषणा कर दी है कि आगामी २१/२२ जनवरी २०२३ को नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के अभूतपूर्व पर अब केवल भूतपूर्व कर्मचारियों का तीसरा आनंददायी स्नेहमिलन आणंद में होने की संभावना है।
अन्य मित्रों को जिन्हें यह पत्र जा रहा है स्नेहवंदन और शुभकामनाएँ ।
अपरंच समाचार यह है कि काली माता की कृपा और आप सब की शुभेच्छा से हम सब यहाँ राज़ी ख़ुशी है। आप और आप सब के प्रियजनों के सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये हम परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं ।
इधर कुछ दिनों से हमारे स्वास्थ्य में भी काफ़ी सुधार हुआ है।दवा दारू चलती रहेगी।
ज़िंदगी में, किसने, कब तक, दिया है साथ । जब तक चली चले तब तक चले चलो।
“थोड़ा कहना बहुत समझना” आप सब तो बहुत समझदार हो । और जैसी कहावत है समझदार को इशारा काफ़ी है ।
तो आप सब बात समझ ही गये होंगे।
मैं पहले से काफ़ी ठीक हूँ पर दवाई और अस्पताल का चक्कर बहुत दिन चलेगा । दिसंबर में भारत लौट सकूँगा यही इच्छा है । शेष प्रभु कृपा रही तो २१ /२२ जनवरी २०२३ वाले आयोजन में भाग भी ले सकूँगा।
बिहार के लाला ने जाने या अनजाने में हाल ही में संपन्न हुई बैठक के कार्यवृत्त साझा करते समय जो अंग्रेज़ी की रंगरेज़ी की है और उसके बाद जो अशुद्धि/ त्रुटि सुधार के लिये बैठक में भागीदारों के पत्रों के आदान-प्रदान से एक बात तो स्पष्ट है कि आप सब में आपसी समझ और मिल जुल कर काम करने की वही ललक है जो जवानी में थी।
विदेशी भाषा अंग्रेजी की हत्या का जो प्रयास बिहार के लाला ने किया उसके लिये वह प्रशंसा के पात्र हैं।
बैठक के कार्यवृत्त को मैंने पढ़ा, गुना- धुना, समय लगा पर समझ में आ ही गया।
मै जुलाई 2020 में भारत से केनेडा आया। और अब तक (अप्रैल 2022 ) तक यहीं पर हूँ। भारत से भागे भारतीय के रूप में मेरा यह जंबूद्वीप भारत खंड से सबसे लंबा प्रवास है।
जनवरी 2021 में व्हाटसएप पर मिले इस विडियो क्लिप को देख बहुत अच्छा लगा था। पर तब पता नहीं था कि कोविड जी और अन्य बहुत सी कठिनाइयों की बदौलत हम यहीं पर अटके रहेंगे। खैर बड़े बूढ़े ( वैसे मैं अब कौन सा जवान हूँ ) कह गये हैं;
“हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरिनाम, जाही विधि राखे राम, वाही विधि राहिये” !
खैर जो है सो है । कर ही क्या कर सकते हैं? बता सकते हैं तो बताइये ? आपने पूछा समय कैसे बिताते हो? धीरज रखिये, पढ़ते रहिये । पता चल जायेगा।
पर जैसे अक्सर पहले “समय बिताने के लिये करना है कुछ काम शुरू करें अंत्याक्षरी ले कर हरि का नाम” के बाद “सामूहिक” खेला होता था, आज कल लैपटॉप, टैबलेट और मोबाइल फ़ोन वाले जमाने में “एकल” खेला का काफ़ी चलन हो गया है। बस अंतर्जाल और कनेक्टिविटी और डेटा चाहिये। आप अपने में मस्त परिवार का हर सदस्य अपने आप में मस्त।
नीचे कुछ चुनिंदा विडियो , उडियो के लिंक दे मारे हैं। आप भी आनंद ले। सिर्फ़ उंगली दबाने का ही कष्ट करना पड़ेगा । पर वस्ताद आप सब लोग इस डिपार्टमेंट में तो पुराने उस्ताद रहे हो। तो एंज्याय करो। समय काटो। वैसे समय तो कटता रहता है बिन काटे भी। कह दी न ऊँची बात ।
पत्रोत्तर की आकांक्षा में,
आप सब का,
भवदीय,
शैलेंद्र
पर जैसे अक्सर पहले “समय बिताने के लिये करना है कुछ काम शुरू करें अंत्याक्षरी ले कर हरि का नाम” के बाद “सामूहिक” खेला होता था, आज कल लैपटॉप, टैबलेट और मोबाइल फ़ोन वाले जमाने में “एकल” खेला का काफ़ी चलन हो गया है। बस अंतर्जाल और कनेक्टिविटी और डेटा चाहिये। आप अपने में मस्त परिवार का हर सदस्य अपने आप में मस्त।
श्री गोपालदास नीरज की गणना हिंदी सबसे प्रसिद्ध और प्रशंसित कवियों होती है। आप जैसे बहुत से लोगों की तरह नीरज मेरे भी बहुत प्रिय कवि हैं।
मेरे गाँव के एक किसान की व्यथा कथा। बिजई बाबा अब न रहे। ओम शांति 🙏🏼
सन् दो हज़ार बीस में मैं क्यूबा गया था। जी हाँ अकेले । छुट्टी मनाने। बच्चों ने भेज दिया था। उसी समय का यह विडियो क्लिप है। हवाना की बस यात्रा के दौरान रास्ते में गाइड एलेक्स नाचते हुये । हम देख रहे थे।
“हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरिनाम, जाही विधि राखे राम, वाही विधि राहिये” !
यह विडियो बिहार के नालंदा जिले के गांव कलियाचक के स्कूल लिया गया था सन २०१७ मे। डाक्टर प्रसाद तिगालापल्ली का है । डाक्टर साहब, मुंबई स्थित सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्थान NITIE मे बिजनेस मैनेजमेंट पढाते हैं । पर दिलो दिमाग से कायल हैं है गांधी जी के मंत्र नई तालीम के । गांव के स्कूल मे डाक्टर साहब बच्चो को साधारण खिलौने से गणित सिखा कर एक बच्ची को पुरस्कृत कर रहे हैं । इनके साथ मेरी बातचीत का एक ब्लाग वृक्षमंदिर पर उपलब्ध है।
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