किसानी की व्यथा कथा

एक २००८ विडियो क्लिप यहाँ लिंक कर रहा हूँ। फ़ेसबुक पर था । कुछ दिन पहले अचानक मिल गया।

यह विडियो उस समय का है जब मैं गाँव अक्सर हर दो तीन महीने में एक बार हो आता था। सोचा था रिटायर होकर वहीं रहूंगा। पर ऐसा हुआ नहीं।

कुछ मित्रों का भी कहना था “आप गाँव में ज़्यादा दिन टिक नहीं पायेंगे। यह बस एक रोमांटिक आइडिया है”।

उनकी बात सच निकली । सपने सपने होते हैं। सब सपने सच नहीं होते। कुछ सपने सच भी हो जाते हैं ।

सपने देखना और अपने सपने को साकार करने के लिये प्रयत्न करते रहना मानव की नियति है।


तीन साल से ज़्यादा हो गये मुझे गाँव गये।

कुछ मित्रों का भी कहना था “आप गाँव में ज़्यादा दिन टिक नहीं पायेंगे। यह बस एक रोमांटिक आइडिया है”

बिजई बाबा अब नहीं रहे। २००८ में बिजई बाबा हमारी पट्टीदारी में सबसे ज़्यादा उम्र के व्यक्ति थे। तब वह बहत्तर साल के थे। और मैं चौंसठ साल का। बिजई बाबा का देहावसान २०२१ में पचासी साल की उम्र में हुआ । अब मैं सतहत्तर साल का हो गाँव पर अपनी पट्टीदारी में सबसे अधिक उम्र का। हूँ।

बिजई बाबा अब नहीं रहे पर अब भी जीवित है उनके द्वारा वर्णित किसान जीवन की त्रासदी । उपज बढ़ी नहीं कि बाज़ार दाम कम। अमूल / एनडीडीबी ने ने रास्ता दिखाया इस समस्या का निराकरण करने का । दूध के मामले में बहुत हद तक सफलता मिली। तिलहन और खाद्य तेल उत्पादन वितरण क्षेत्र में सफलता नहीं मिली। मेरा सौभाग्य था इन संस्थानों ने लगभग तीन दशक तक जुड़े रहने का। पर मैं अपने क्षेत्र के लिये कुछ न कर पाया। आख़िर क्यों ? ख़ैर इस बात पर चर्चा फिर कभी।


Loading


Response

  1. Yudhvir Singh Chaudhary Avatar
    Yudhvir Singh Chaudhary

    Vrikshamandir.com is a good site to read.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: