पृथ्वी सौंदर्य – पृथ्वी प्रकोप

डाक्टर शैलेंद्र पालविया
डाक्टर शैलेंद्र पालविया

भूतपूर्व एनडीडीबिएन वर्तमान में प्रोफ़ेसर, एमआइएस, लाँग आइलैंड युनिवर्सिटी

कल खेल में हम हों न हों 
नीला आकाश रहेगा सदा 
झिलमिल सितारे रहेंगे  सदा
सूरज जग रोशन करेगा सदा
जलचर जल क्रीड़ा करेंगे सदा
नभचर कलरव करेंगे सदा 
थलचरों की नाद गूंजेगी सदा

कल खेल में हम हों न हों 
बाढ़ आँधी नाश करेंगे सदा
ज्वालामुखी क़हर ढायेंगे सदा
बवंडर घरों को गिरायेंगे सदा
बर्फीले तूफ़ान डरायेंगे सदा
भूस्खलन भी होता रहेगा सदा


कल खेल में हम हों न हों 
काले बादल गरजेंगे सदा
दामिनी गगन में चमकेगी सदा
रिमझिम बारिश गिरेगी सदा
झील झरने बहते रहेंगे सदा
सरिताओं सरकती रहेंगी सदा
सागर उछलते रहेंगे सदा

कल खेल में हम हों न हों 
वाद विवाद होते रहेंगे सदा
तर्क वितर्क चलते रहेंगे सदा
युद्ध विनाश करते रहेंगे सदा
भूकंप से भयभीत होंगे सब सदा
बीमारी महामारी आयेंगी जायेंगीं सदा
वनाग्नि आक्रोश दिखायेगी सदा


कल खेल में हम हों न हों 
झाड़ झाड़ियाँ रहेंगी सदा
रंग बिरंगे पुष्प खिलेंगे सदा
भ्रमर तितली मंडलायेंगे सदा
शादियों का समाँ रहेगा सदा
निराले नन्हे नाचेंगे सदा
नई पीढ़ियाँ पनपेंगी सदा

कल खेल में हम हों न हों 
धनवान धन से खेलेंगे सदा
गरीब भूख से तड़पेंगे सदा
अन्याय यह सब चलता रहेगा सदा
बंदूक़ें दनदन चलेंगी सदा
नर नर का संहार करेगा सदा
पुरानी पीढ़ियाँ ओझल होंगी सदा

कल खेल में हम हों न हों 
चाँद चाँदनी बिखेरेगा सदा
उषा की लालिमा रहेंगी सदा
चंचल शिशु गायेंगे नाचेंगे सदा
यौवन में हर्षोल्लास करेंगे सदा
वृद्ध वृद्धा यादों में जियेंगे सदा

कल खेल में हम हों न हों 
पृथ्वी सौंदर्य आनंदित करेगा सदा
ब्रह्माण्ड के रहस्य जानेंगे न कदा
जीव अजीव की चर्चा चलेगी सदा
अन्य ग्रहों पर जीव खोजेंगे सदा

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Published by Vrikshamandir

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