बुरा न मानो होली आने वाली है

चिंटू अब “पढ़े लिखे” लोगों पर निबंध सुनाओ
- पढ़ा लिखा भी बहुत बोलता है बिलकुल अनपढ़ की तरह ।
- “अनपढ़” और “पढ़े लिखे” दोनों अपना अपना “सच” ही बोलते है। दोनों का दावा है कि वह अपने “सच” के सिवा कुछ नहीं बोलते हैं।पर सच क्या है न तो “अनपढ़” अथवा “पढ़े लिखे” लोगों को अथवा “पढ़े लिखे अनपढ़ों” किसी को भी नहीं मालूम। सच सतत की खोज जारी है। मानवी त्रासदी है ।
- “अनपढ़” और “पढ़े लिखे” दोनों ही बहुत फ़ोटो खिंचाते हैं। कपड़े भी दोनों बहुत बदलते हैं।क्योंकि सोशल मिडिया पर दोनों ही अपना अपना पक्ष रखते रहते हैं। तथाकथित “गोदी” मिडिया चूँकि “पढ़े लिखे” लोगों को ज़्यादा भाव नहीं देती इसलिये “पढ़ेलिखे” सोशल मिडिया पर नये नये प्रयोग करते रहते हैं। अनपढ़ भी यही करते हैं। दोनों प्रकार के लोग भारतीय / इंडियन / जंबूद्वीप वासी हैं । इसलिये कपड़े बदल बदल फ़ोटो खिंचाना दोनों “अनपढ़” और “पढेलिखों” के लिये मजबूरी ही नही वरन ज़रूरी भी है ।
- “पढा लिखा” “अनपढ़” की बनिस्बत कम विदेश यात्रा करता है । वह इसलिए क्योंकि “अनपढ़” “पढ़ेलिखे” लोगों के अनुसार सत्ता पर क़ाबिज़ है। शायद “पढ़ेलिखे” जब सत्ता पर क़ाबिज़ होंगे वह भी इन “अनपढ़ों” की भाँति ही विदेश यात्राएँ करेंगे । देश हित में यह सब करना ही पड़ता है।
- “अनपढ़” अपने को विश्वगुरु समझता है ।”पढ़ा लिखा” अपने को “भारत समस्या विशारद” मानता है साथ ही यह भी मानता है कि “अनपढ़” भारत समस्या विषय में बारंबार फेल होता जा रहा है। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही है।
- “अनपढ़” मिडिया में अपना गुणगान करता है । “पढ़ा लिखा” मिडिया में मौक़ा पाते ही “अनपढ़” का कच्चा चिट्ठा खोलता है और मान लेता है इसी में उसका गुणगान है।
- “अनपढ़” बहुत घमंडी है। “पढ़े लिखे” को केवल एक ही बात का घमंड है । वह है “अनपढ़” से ज़्यादा बुद्धिमान होने का। “पढ़ा लिखा अनपढ़” और “अनपढ़ पढ़ा लिखा” कनफुजिआस्टिक स्टेट में विचरण कर रहा है मस्त है !