कुछ दोहे,चौपाइयाँ,शेर और लघु कविताएँ (औरों की लिखी या कही)

अगर आप अपने मनपसंद दोहे,चौपाइयाँ,शेर और लघु कविताएँ मुझसे साझा करें तो मैं यहाँ आपके नाम के साथ प्रकाशित कर सकूँगा । यदि आप अनाम रह कर अपने मनपसंद दोहे,चौपाइयाँ,शेर और लघु कविताएँ मुझसे साझा करना चाहे तो मैं वैसा ही करूँगा । इस संबंध में आप मुझसे sk@vrikshamandir.com संपर्क कर सकते हैं।


टुकडे टुकडे कर दिन बीता, धजि धजि बीती रात।

जिसका जितना आँचल था मिली उसे उतनी सौग़ात।


राम झरोखे बैठ के जग का मुजरा लेहु।

जिसकी जैसी चाकरी वैसी तनख़्वाह देहु ।


देह धरे का दंड है सब काहू को होय ।

ज्ञानी भोगे ज्ञान से मूरख भोगे रोय । 


बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल।

हरि का सुमिरन छाड़ि के घर ले आया माल।


निंदक नियर राखिये आँगन कुटी छवाय।

बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाय।


राम नाम की लूट है लूट सकै तो लूट।

अंत समय पछतायेगा जब प्राण जायेंगे छूट।


काल करे सो आज कर आज करे सो अब।

पल मे परलय होयगी बहुरि करेगा कब।


चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए।

वैद्य बिचारा क्या करे, कहां तक दवा खवाय।


आगि जो लगी समुद्र में, धुआं न प्रगट होए।

की जाने जो जरि मुवा, जाकी लाई होय।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।


जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय |

मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय |



जितना कम सामान रहेगा, उतना सफ़र आसान रहेगा।

जितनी भारी गठरी होगी, उतना तू हैरान रहेगा।


उससे मिलना नामुमक़िन है, जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा।

हाथ मिलें और दिल न मिलें,ऐसे में नुक़सान रहेगा।


जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं,मुश्क़िल में इन्सान रहेगा।

नीरज’ तो कल यहाँ न होगा, उसका गीत-विधान रहेगा।


तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा।

सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा।


अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई ।

मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।


आप मत पूछिये क्या हम पे ‘सफ़र में गुज़री?

आज तक हमसे हमारी न मुलाकात हुई।

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