
शैलेंद्र का संदेश



श्री अमरीक सिंह का निमंत्रण व्हाट्सएप पर कल मिला । उनकी इच्छा थी कि मै एनडीडीबी के उत्तर भारत में रहने वाले भूतपूर्व, पर वास्तव में “अभूतपूर्व”, कर्मचारियों के स्नेह मिलन के अवसर पर जो 4 नवंबर 2023 को आयोजित है, एक संदेश भेजूँ।
अमरीक का निमंत्रण पाकर बहुत अच्छा लगा । निमंत्रण अमरीक का स्वीकार करना ही था ।
मजूमदार, राजन, सिद्दीक़ी, अरुन , मकरंदी, पार्था, गुप्ता और कुछ अन्य सहयोगियों के प्रयास से ( सब के नाम याद नहीं आ रहे क्षमा चाहूँगा) भूतपूर्व एनडीडीबी कर्मचारियों के स्नेह मिलनों की परंपरा 2015 मे आणंद से शुरू हुई। अब तक तीन बार 2015, 2020 और 2023 मे ऐसे आयोजन हो चुके हैं पर हर बार आणंद मे। हर बार 150 से 200 लोगों ने इन आयोजनों में हिस्सा लिया। मुझे इन तीनों आयोजनों में भाग लेने का मौक़ा मिला।
आज आप उत्तर भारत के रहने वाले एनडीडीबी के भूतपूर्व कर्मचारियों ने ऐसा आयोजन कर एक नई पहल की है। आशा है ऐसे आयोजन क्षेत्रीय स्तर पर भारत के अन्य शहरों में भी होंगे।
इन आयोजनों से हमें मौक़ा मिलता है अपने पुराने साथियों से मिलने का, बीते दिनों की यादें तरोताज़ा करने का। जीवन के संध्याकाल में पुराने साथियों के साथ बीते दिनों की यादे हममे एक नई स्फूर्ति और उर्जा भर देती हैं। ज़िंदगी की बीती यादों की बैटरी रिचार्ज हो जाती है।
आप जैसे एनडीडीबी के पुराने कर्मचारियों में से मैं भी एक हूँ । मेरा कार्यकाल सन 1968 से 2000 तक का रहा। सपने में भी न सोचा था कि मै एनडीडीबी छोड़कर कहीं और काम करूँगा । पर होनी को कौन टाल सकता है। परिस्थितियाँ बदली शायद हम भी बदले और जो होना था हुआ। तेइस बरस बीत गये एनडीडीबी ने मुझे छोड़ा पर मै एनडीडीबी को अब तक न छोड़ सका ।
मै आणंद गया थे एक नौकरी करने । बड़ी मुश्किल से मिलती थी नौकरी सन साठ के दशक मे ।पर नौकरी पाने के बाद मिला एक आदर्श ।काम बन गया कर्तव्य ।
आदर्श था डा कुरियन और उनके गुरू श्री त्रिभभुवन दास पटेल द्वारा दिया मंत्र “दूध के उत्पादन, एकत्रीकरण, खरीद, प्रसंस्करण और विपणन के एकीकरण के साथ–साथ दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए इनपुट के विपणन को पेशेवरों द्वारा प्रबंधित और दूध उत्पादकों के स्वामित्व और एक कमान वाला एक ऐसा संगठनात्मक ढाँचा बनाना, जो दूध उत्पादकों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए काम करता हो और उनकी ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील हो।”
डॉ. कुरियन के समय में दूध उत्पादकों की ज़रूरतें एनडीडीबी के सभी प्रयासों का केंद्र बिंदु बन गईं।आनंद पैटर्न का यही मूल मंत्र था। जिसे एनडीडीबी ने आपरेशन फ्लड 1, 2 और 3 के माध्यम से सारे देश में कार्यान्वित किया।तिलहन और खाद्य तेल, स्वास्थ्य, पानी, नमक आदि जैसे अन्य क्षेत्रों में भी काम हुआ। बहुत मेहनत करनी पडी।विरोध हुआ। सहयोग मिला। सफलता मिली। कहीं आशातीत सफलता नहीं भी मिली। पर भारत आज दुनिया में सबसे ज़्यादा दूध पैदा करने वाला देश बन गया।
आनंद पैटर्न पद्धति पर बने सभी संस्थान क्या इसके मूल मंत्र के पूर्णतः अनुरूप है ? मेरा उत्तर है नही । काफ़ी हद तक हो सकते हैं पर शत प्रतिशत तो बिलकुल नही । पर यह सही है कि बहुत हद तक आनंद पद्धति या अमूल पद्धति पर काम करने वाले संस्थान इस के दर्शन ( फ़लसफ़ा) को जानते ,मानते हैं और कार्यरूप में कुछ फेर बदल कर आशातीत रूप से लाभान्वित भी हो रहे हैं। आज कल तो सफल प्राइवेट डेयरी कंपनियाँ भी अमूल पद्धति पर ही अपना दूध उत्पादन, एकत्रीकरण और ख़रीद करती हैं । फ़ार्मर प्रोड्यूसर आरगनाइजेशन भी मूलतः इन्ही सिद्धांतों पर चलते हैं ।
हमारा सौभाग्य है हमें ऐसी संस्था में काम करने का मौक़ा मिला ।
सन 2015 में आनंद मे आयोजित स्नेह मिलन में प्रश्नोत्तर के समय एक भाई काफ़ी समय तक अपनी नौकरी की दौरान भोगी त्रासदी की बात करते रहे। मैं संचालन कर रहा था। पूरा सेशन पटरी से हट भूमिगत होने की कगार पर था। बहुत देर तक सुनने के बाद मुझे अचानक एक ख़याल आया । उन्हें आदर पूर्वक रोक कर मैंने सभा में उपस्थित सब लोगों को संबोधित कर पूछा “ भाइयों और बहनों आप में से किन किन के बच्चे आप से अच्छा कर रहे अच्छे स्तर का जीवन जी रहे हैं है? कृपया हाथ उठायें।” सबने हाथ उठाये वह भाई जो अपनी त्रासदी का बयान कर रहे थे उनका हाथ भी उठा था। मुझे फिर और ज़्यादा बोलने की ज़रूरत न पड़ी ।
हम काम करते हैं अपने लिये, परिवार के लिये, संस्था के लिये, संस्था द्वारा दी जा रही सेवा और वस्तुओं का लाभ लेने वाले लोगों के लिये, समाज के लिये, देश के लिये, मानवता के लिये ।
डाक्टर कुरियन द्वारा दिया विजन और मिशन एक ऐसा विजन और मिशन बना जिसमें ऊपर वर्णित सभी तबके लाभान्वित हुये। हमारा परिवार और हमारे बच्चे भी ।
आप सब को मेरी शुभकामनाएँ और बधाईयां स्नेह मिलन के इस आयोजन पर ।
धन्यवाद 🙏
Though my Hindi knowlwdge is limited I could still easily sail through SK”s poetic varnan of his life within and outside NDDB. 1969 to 1996 was my working life in NDDB, i still live in the memory of our NDDB its beautiful campus, former colleagues and bosses.
“Once in NDDB always in NDDB”.
Excellent message as always SK sir.