
इस ब्लाग का लेखन मनीष भारतीय की फ़ेसबुक पर लिखी टिप्पणी से प्रेरित हैमैंने उनके लिखे कई पैरा शब्दशः यहाँ उद्धरित किये हैं। इस लिये हम साझा लेखक हैं ।मनीष से मेरा परिचय,चार या पाँच साल पहले - ठीक से याद नहीं - संभव हुआ, श्री विजय महाजन के सौजन्य से।बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी मनीष मेरे उन मित्रों में है से एक हैं जो वृ़क्षमंदिर पर सपत्नीक पधार चुके हैं।
ऊपर दिये फ़ोटो के साथ मनीष की टिप्पणी थी “चाहे भगत सिंह हों, चाहे गांधी जी, चाहे बाबा साहेब किसी को पूरा “ख़रीददार” न मिला । आज बाज़ार में तमाम लोग इन्हीं तीनों को बेच कर अपनी दुकानों से नक़ल का सामान बेच रहे हैं। भगत सिंह , गांधी जी, बाबा साहेब पैदा हों लेकिन किसी और के घर में!”
बाबा साहेब, गांधी जी और भगत सिंह तीनों ही भारत की स्वतंत्रता के लिये प्रतिबद्ध थे, इस दिशा में काम किया और नेतृत्व प्रदान किया। गांधी जी की हत्या हुई। भगत सिंह को फाँसी दी गई। गांधी जी ने कभी भी किसी संस्था में कोई पद ग्रहण न किया। बाबा साहेब मिनिस्टर रहे अंग्रेजों के समय की सरकार मे और स्वतंत्र भारत की सरकार में भी।
गांधी जी और भगत सिंह दोनों चुनाव नहीं लड़े।बाबा साहेब १९५२ मे आज़ाद भारत के पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नारायण काजोलकर से- जो पहले बाबा साहेब के असिस्टेंट रह चुके थे- बंबई लोक सभा क्षेत्र से हार गये। १९५७ के चुनाव में भंडारा लोकसभा क्षेत्र से हुये चुनाव मे बाबा साहेब तीसरे स्थान पर रहे।
“जुलाई 1946 में जोगेंद्रनाथ मंडल और मुस्लिम वोटों की मदद से डॉ. अंबेडकर बंगाल प्रांत से संविधान सभा के लिए चुने गए। गांधीजी के आदेश पर, कांग्रेस ने उन्हें जुलाई 1947 में मुंबई प्रांत से संविधान सभा के लिए चुना। अम्बेडकर को प्रथम राष्ट्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।
अंबेडकर को 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद के श्रम सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था – 20 जुलाई, 1942 के रॉयल वारंट द्वारा एक प्रकार का वास्तविक श्रम मंत्री।
ब्रिटिशों द्वारा भारतीय नेताओं से परामर्श किए बिना भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में घसीटा गया। प्रांतों में कांग्रेस सरकारों ने विरोध में अपना इस्तीफा दे दिया। मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश युद्ध प्रयासों का समर्थन किया। अम्बेडकर ने भी इस पर कायम रहना चुना।”
बाबा साहेब और गांधी जी
भगत सिंह ने कभी गांधीजी से सीधे संवाद नहीं किया। लेकिन बाबा साहेब और गांधी जी बीच संवाद हुये । पूना पैक्ट हुआ पर इन दोनों के संबंध,आज के दौर के भी, मेरे जैसे कमपढ लोगों की समझ से परे हैं। मैंने कुछ महीनों पहले 1955 में बाबा साहेब का बीबीसी को दिया यह इंटरव्यू देखा । ख़ासा प्रभावित और उससे भी ज़्यादा कनफ्यूज भी हुआ। बाबा साहेब निःसंदेह intellectual giant थे।
मुझे एक और विडियो मिला गांधी जी और बाबा साहब के स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान और भारत मे सामाजिक बदलाव लाने के तरीक़ों और सोच पर ।
इस विडियो मे ज़्यादा समय इन दोनों महान शख़्सियतों की सोच के सामंजस्यों की चर्चा की गई है । पर इस विडियो में एक अपील जैसा संवाद भी है। सोलह मिनट से आगे ध्यान से सुनें। एक प्रश्न उठाया गया है “गांधी जी अस्पृश्यता को पाप मानते थे और बाबा साहेब अपराध तो दोनों को साथसल् कर क्यो नहीं चल सकते हैं?” बात तो सही है पर ज़मीनी स्तर पर राजनीति करने का अच्छा मौक़ा भी प्रदान करती है।
अंबेडकर और गांधी जी के संबंधों पर इंडियन नेशनल कांग्रेस के “कांग्रेस संदेश” में सात अप्रैल 2022 अंक मे Ambedkar and Gandhi शीर्षक से प्रकाशित इस लेख मे काफ़ी विस्तार से चर्चा की गई है। पूरा पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें ।Ambedkar and Gandhi
इस लेख मे पूना पैक्ट के बारे में बड़े विस्तार से लिखा गया है। मैं इस लेख के कुछ अंश हिंदी अनुवाद कर नीचे लिख रहा हूँ। यह बात उस समय की है जब गांधी जी अनशन पर थे। बाबा साहेब अंबेडकर की माँग थी कि अछूतो ( untouchables) के लिये अलग कांसटिचुएंसी हो जिसमे सिर्फ अछूत ही वोट करें। अंग्रेज़ इसके लिये तैयार थे । अंग्रेज तो तैयार थे मुसलमानों, इसाइयों ,सिखों और एंग्लो-इंडियनों के लिये भी अलग कांसटिचुएंसी बनाने के लिये। पर गांधी जी इस के लिये तैयार न थे और विरोध में अनशन पर थे। सारे देश मे माहौल बहुत तनावपूर्ण था । कांग्रेस संदेश के अंग्रेज़ी लेख में लिखे का हिंदी अनुवाद नीचे दिया गया है”।
22 सितंबर को, बाबासाहेब येरवडा जेल गांधी से मिलने गए वातावरण बहुत तनावपूर्ण था। गांधी को देखकर, बाबासाहेब का क्रोध कम हो गया। उन्होंने गांधी के बिस्तर के पास बैठकर अपने बात विस्तार से एक संयमित शांत आवाज में रखी। अंबेडकर जी ने यह भी निश्चित रूप से कहा कि आप हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं।
गांधी – मेरी संवेदना आपके साथ है। डॉक्टर, मैं आपके कहने पर आगे बढ़ सकता हूँ। लेकिन क्या आप चाहते हैं कि मैं जीवित रहूँ?”
अंबेडकर- “हाँ, महात्माजी। अगर आप मेरे लोगों के लिए सब कुछ करेंगे, तो आप सबके महान नायक बन जाएंगे”
गांधी- “आप जन्म से ही अछूत हैं, और मैं अपने आप स्वाभाविक रूप से। क्या हम सभी एक और अखंड हो सकते हैं। सोचिए, अगर आप मुझे जीवित रखना चाहते हैं” ( You are untouchable by birth, and I spontaneously. May we all be one and inseparable. Think, if you want to keep me alive” – Gandhiji)
इसके बाद, पुणे संधि हुई। अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बजाय आरक्षित सीटों के प्रस्ताव पर सहमति हुई। बाबासाहेब ने 24 सितंबर, 1932 को पुणे संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसमें अछूतों के लिए 148 आरक्षित सीटें थीं। इस समझौते के बाद भी, गांधी-अम्बेडकर एक बार मिले। लेकिन पुणे संधि ने अम्बेडकर के अनुयाइयों के मन में कड़वाहट पैदा की।”
भगत सिंह, बाबा साहेब और गांधी जी की धार्मिक सोच
भगत सिंह एक सिख परिवार से संबंध रखते थे और उनके शुरुआती जीवन की “धार्मिकता” सिख धर्म और आर्यसमाज के सिद्धांतों पर आधारित थी। पर यह ज़्यादा देर तक नहीं टिकी। अपने लेख “ मै नास्तिक क्यों हूँ “ ( 1930 में प्रकाशित) स्पष्ट लिखते हैं कि कैसे और किन कारणों से उनकी सोच में बदलाव आया। इस लेख के यहाँ कुछ अंश यहाँ नीचे उद्धरित हैं ।
मेरा नास्तिकतावाद कोई अभी हाल की उत्पत्ति नहीं है। मैंने तो ईश्वर पर विश्वास करना तब छोड़ दिया था, जब मैं एक अप्रसिद्ध नौजवान था। कम से कम एक कालेज का विद्यार्थी तो ऐसे किसी अनुचित अहंकार को नहीं पाल-पोस सकता, जो उसे नास्तिकता की ओर ले जाये। यद्यपि मैं कुछ अध्यापकों का चहेता था तथा कुछ अन्य को मैं अच्छा नहीं लगता था। पर मैं कभी भी बहुत मेहनती अथवा पढ़ाकू विद्यार्थी नहीं रहा। अहंकार जैसी भावना में फँसने का कोई मौका ही न मिल सका। मैं तो एक बहुत लज्जालु स्वभाव का लड़का था, जिसकी भविष्य के बारे में कुछ निराशावादी प्रकृति थी। मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डी0 ए0 वी0 स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त में घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिये अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिये प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ। असहयोग आन्दोलन के दिनों में राष्ट्रीय कालेज में प्रवेश लिया। यहाँ आकर ही मैंने सारी धार्मिक समस्याओं – यहाँ तक कि ईश्वर के अस्तित्व के बारे में उदारतापूर्वक सोचना, विचारना तथा उसकी आलोचना करना शुरू किया। पर अभी भी मैं पक्का आस्तिक था। उस समय तक मैं अपने लम्बे बाल रखता था। यद्यपि मुझे कभी-भी सिक्ख या अन्य धर्मों की पौराणिकता और सिद्धान्तों में विश्वास न हो सका था।
महात्मा गांधी धार्मिकता के मामले में एक संघर्षपूर्ण यात्रा पर थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेक धार्मिक परंपराओं का अध्ययन किया और उनकी सोच में विश्वास की एक अनूठी रूपरेखा थी। गांधी जी का मुख्य धार्मिक सिद्धांत अहिंसा, सत्य, और सहिष्णुता पर आधारित था। गांधी जी ने अपने जीवन में धार्मिकता को अपने आदर्शों के साथ मिलाकर दिखाया और अपने सत्याग्रह आन्दोलन के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।महात्मा गांधी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी व्यक्तित्वों में से एक थे।
उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को अपनाया और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को शीर्ष नेतृत्व दिया । उनके विचारों ने देश को एक नया दिशा दी और उन्हें एक महान राष्ट्रनिर्माता के रूप में याद किया जाता है।गांधी जी के विचारों का सोर्स डाकुमेंट उनका लेख / किताब “Hind Swaraj” (1910 में सर्वप्रथम प्रकाशित) है। इसमें उन्होंने अपने स्वराज्य के विचारों को व्यक्त किया है और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने सिद्धांतों को व्यक्त किया है। इस पुस्तक में उन्होंने अहिंसा, सत्याग्रह और स्वदेशी के महत्व को बताया है और उन्होंने विदेशी आधारित आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ अपने विचारों को प्रस्तुत किया है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निःसंदेह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन में दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और उन्हें समाज में सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनके विचारों ने भारतीय समाज में सामाजिक बदलाव को प्रेरित किया।
अंबेडकर के विचारों का सोर्स डाकुमेंट उनकी पुस्तक “Annihilation of Caste (1936 में प्रकाशित) ” है। इसमें उन्होंने जाति व्यवस्था पर अपने विचारों को व्यक्त किया है और उन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ने की आवाज बुलंद की है। इस पुस्तक में उन्होंने जाति व्यवस्था के विरुद्ध अपनी निर्भीक आवाज बुलंद की। उन्होंने समाज पर जाति व्यवस्था के प्रभाव को दर्शाया। बाबा साहब ने एक ऐसे सार्थक विमर्श की नींव रखी जो आज भी भारतीय राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की चिंतन धारा के मूल में है।
भगत सिंह, गांधी जी और अंबेडकर तीनों महान भारतीय नेता थे, जिनकी सोच में कुछ साम्यताएं और कुछ विषमताएं थीं।
तीनों नेताओं की सोच में भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रति गहरा आदर्शवाद था।
तीनों सामाजिक न्याय के लिये प्रतिबद्ध थे। तीनों ने समाज मे शोषित और वंचित तबकों के अधिकारों के लिये संघर्ष किया। तीनो ने अपने अलग अलग तरीक़ों से आज़ादी के लिये संघर्ष किया।
भगत सिंह ने ज़रूरत पड़ने पर अंग्रेजों के प्रति हिंसा का समर्थन किया जब कि गांधी जी और बाबा साहब ने हिंसा का विरोध किया और अहिंसा तथा शांति को स्वतंत्रता पाने का प्रमुख माध्यम माना।
यह साम्यताएं और विषमताएं तीनों नेताओं की सोच के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।
इन तीनों महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने योगदानों और विचारों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को महत्वपूर्ण दिशा दी। उनके सोर्स डाकुमेंट्स उनके विचारों को समझने में मदद करेंगे और हमें उनके योगदान की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करेंगे।
इतिहास भी तथाकथित समाज “विज्ञान” की भाँति केवल सफ़ेद और काला ( सही / गलत) न होकर मटमैला ही होता है। जो पक्ष ज्यादा कुकुरहाव कर नैरेटिव बना ले वह पक्ष सफेद और विरोधी पक्ष काला लगने लगता है।
हमे तो लगता है कि भगत सिंह, गांधी जी, बाबा साहेब तीनों की विचारधाराओं को केवल बेचा जा रहा है वह भी टुकड़ों में। तमाम तरह की चिल्ल-पों चलती रहती है। बहुत से लोग बेवक़ूफ़ बन रहे हैं। शायद हम भी ।
राजनीतिक भाषणों में अक्सर सुनते में आता है कि हमें कभी भगत सिंह के दिखाये रास्ते पर, कभी बाबा साहेब के दिखाये रास्ते पर और कभी गांधी जी के दिखाये रास्ते पर चलना चाहिये। बाबा साहेब, गांधी जी और भगत सिंह के विचारों में सामंजस्य और असमानता पर चर्चा कम होती है। शायद राजनीति के धुरंधरों का आशय यह तो नहीं कि वह आवाहन कर रहे हैं हमे अंबेडकर रोड, भगत सिंह रोड , या महात्मा गांधी रोड पर ही चलना चाहिये।
भगत सिंह, गांधी जी, बाबा साहेब की विचारधाराओं को बेचने और ख़रीदने से ज़्यादा ज़रूरी है उनके विचारों को अपने प्रयत्नों से जानना समझना और वर्तमान संदर्भ में अपनी समझ बनाना।
Reference:- 1- The Leaflet 2- Mahatma Gandhi and Bhagat Singh a clash of ideologies 3- Congress Sandesh 4- मै नास्तिक क्यों हूँ 5- Hind Swaraj 6- Annihilation of Caste 7- Another blog on authenticity of मैं नास्तिक क्यों हूँ 8- Video link why I am atheist