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Stories and Discussions on Human Development, Culture & Tradition | वृक्षमंदिर से कथा, संवाद एवं विमर्श विकास संस्कृति तथा परंपरा पर

कलजुग में लोग बड़े बेदर्द , बेमुरव्वत और बेहूदा हो जाते हैं या कलजुग उनसे करवाता है

मेरे मित्र श्री मनीष भारतीय ने लगभग ग्यारह साल पहले 3 नवंबर 2011 को अपनी फ़ेसबुक वाल पर यह मेसेज पोस्ट किया था।

टीम अन्ना ने राईट टू रिकाल की बात कही, चुनाव आयोग ने कहा यह अव्यह्वारिक है, हालाँकि उनकी दूसरी मांग “उपरोक्त में से कोई नहीं” मान ली गयी. सरकारी लोकपाल में भी उनकी ३८ में से ३५ या उस से ज्यादा बातें मान लेने का दावा किया जा रहा है, संसद को सर्वोपरि मानते हुए संसद के भीतर सांसदों के व्यवहार को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र बाहर रखना जरुरी भी है, नहीं तो सांसद अपनी बात संसद के भीतर निडर हो कर नहीं कह पाएंगे और ऐसी संसद लोकपाल की दासी बन कर रह जाएगी. अब शीतकालीन सत्र में सरकार चाहें जो भी लोकपाल बिल प्रस्तुत करे, इस बात की क्या गारंटी है की अन्ना और उनकी टीम उस बिल को सही मान लेगी, या फिर अपनी अ-व्यवहारिक मांग पर अड़ कर नया आन्दोलन शुरू नहीं कर देगी. उम्मीद है सरकार और अन्ना दोनों देश की जनता के प्रति इमानदार रहेंगे और देश को शान्ति से जीने देंगे. लेकिन, अरविन्द केजरीवाल और भूषण द्वय को देख के लगता नहीं की उनके शैतानी दिमाग इतनी आसानी से शांत बैठेंगे.

बारह साल बीत गये 2023 आते आते अन्ना, केजरी और भूषण अलग थलग हो गये।लोक पाल जी का बिल न जाने कौन से बिलों में घुसता निकलता निकलता 2013 मे पार्लियामेंट मे प्रगट हुआ, पास हुआ, 2016 में संशोधित हुआ और लोकपाल जी ने ओहदा सँभाल भी लिया। ज़्यादा जानकारी के इच्छुक यहाँ उँगली ☝️☝️☝️☝️करें।

  • केजरी लोकपाल, भ्रष्टाचार आदि को ठेंगा दिखा दिल्ली और पंजाब के मालिक बन बैठ हैं। और भी राज्यों में सल्तनत बढ़ाने में मनोयोग से लगे हुये हैं।
  • अन्ना जी रालेगांव सिद्धी में विश्राम योग में स्थापित हो गये हैं। वहीं मंदिर में निवास सादा जीवन , गाँव की साफ़ शुद्ध हवा और पहले जैसी ज़िंदगी । केजरी जी और केजरी जी की मित्र मंडली से संबंध विच्छेद के बात अन्ना ने चेला पालने से तौबा कर ली है। ऐसा प्रतीत हो रहा है।
  • भूषण जी दूसरों के फटे या सिले से बेपरवाह दोनों में अपनी क़ानूनी टांग अड़ाने में फिर व्यस्त हो गये ।
  • श्री योगेन्द्र यादव उर्फ़ सलीम भी केजरी जी से नाता तोड़ अपनी खुद की पार्टी बना चुनावों में पटखनी दर पटखनी खाने के बाद भी भारतीय टेलीविजन समाचार के वाद विवाद जगत में किसी न किसी कारण और अक्सर अकारण भी छाये रहते हैं।
  • यह फ़ेहरिस्त बहुत लंबी हो सकती है ।राजनीतिक पार्टियाँ अपने अपने धोबी पर साफ़ और गंदे दोनों तरह के कपड़े धोती रहती हैं। आज कल जो राजनीतिक पार्टी शासन मे है उसका धोबी घाट बड़ा प्रबल है। काले को सफ़ेद करने में सबसे आगे यह हैं। आगे चल कर कोई और पार्टी यदि सत्ता में आई तो वह भी ऐसा ही करेगी। कुछ मित्रों के अनुसार ऐसा होगा यह अवश्यंभावी है।

आख़िर कलजुग है और यहाँ बात कलजुग की हो रही है। चार उदाहरण काफ़ी हैं। कलजुग बडा बेदर्द है। किसी का लिहाज़ नहीं करता ।जहां तक कलजुगी लोगों का सवाल है, मैं यह नहीं कह रहा कि सब एक दूसरे का लिहाज़ करते हैं या सब एक दूसरे का लिहाज़ नहीं करते हैं ।पर चूँकि कलजुग किसी का लिहाज़ नहीं करता शायद इन्हीं कारणों से कलजुगी रंग मे ज़्यादा रंग जाने पर कुछ लोग कलजुग की नक़ल मार उसके जैसा व्यवहार करने के आदी हो जाते हैं।

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