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घर रहेंगे, हमीं उनमें रह न पाएँगे

कुंवर नारायण की कविता

घर रहेंगे, हमीं उनमें रह न पाएँगे,
समय होगा, हम अचानक बीत जाएँगे।
*अनर्गल ज़िंदगी ढोते किसी दिन हम,
एक आशय तक पहुँच सहसा बहुत थक जाएँगे।

मृत्यु होगी खड़ी सम्मुख राह रोके,
हम जगेंगे यह विविधता, स्वप्न, खो के।
और चलते भीड़ में कंधे रगड़ कर हम,
अचानक जा रहे होंगे कहीं सदियों अलग होके।

प्रकृति और पाखंड के ये घने लिपटे,
बँटे, ऐंठे तार—
जिनसे कहीं गहरा, कहीं सच्चा,
मैं समझता—प्यार।

मेरी अमरता की नहीं देंगे ये दुहाई,
छीन लेगा इन्हें हमसे देह-सा संसार।
राख-सी साँझ, बुझे दिन की घिर जाएगी,
वही रोज़ *संसृति का **अपव्यय दुहराएगी।

~~ कुंवर नारायण

* अनर्गल = “अनर्गल” शब्द का अर्थ है अप्रिय या अवांछनीय। यह शब्द किसी चीज़ को अनुपयुक्त या अच्छा नहीं मानने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग किसी कार्य या स्थिति को ठीक नहीं मानने के लिए किया जाता है।

** संसृति = “संसृति” का अर्थ है संसार या संसारिक जीवन। इस शब्द का उपयोग जन्म-मरण और संसारिक संचालन के संदर्भ में किया जाता है। इसका अर्थ है जीवन की सांसारिक चक्रव्यूह जिसमें जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म आदि के संदर्भ में उपयोग किया जाता है।

*** अपव्यय = “अपव्यय” का अर्थ है व्यय या खर्च। इस शब्द का उपयोग धन, समय, ऊर्जा, संसाधन आदि के खर्च के संदर्भ में किया जाता है। यह एक संज्ञातक शब्द है जिसका उपयोग खर्च करने या गंवाने के लिए किया जाता है।

आभार हिंदवी.ओआरजी

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