On Father’s Day I had received an email from MK Sinha sharing a message that he had posted on LinkedIn.
“आज सुबह, इन्डियन स्टैन्डर्ड टाईम के करीब पांच बजे, जब अपनी रोज की रूटीन के अनुसार , अपने परिचितों, दोस्तों, रिश्तेदारों को मेसेज देने अपना व्हाटसएप खोलो तो फादर्स डे की शुभकामनाओं के मेसेज भरे पड़े थे। एक अज़ीब सी इन्टेन्स, डिप्रेस्सिव माइन्डब्लाक सिंड्रोम में चला गया। सोचने लगा कि रोज जो मै पितृदेवो भव, मातृ देवो भव कह कर दिन की शुरूआत करता हूं वह कहीं कोई बड़ी भूल तो नही हो गई। कहीं मेरे पिता हम से दूर तो नही हो गए। ये कैसी बिडम्बना है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लोग मुझे बता रहे है कि मेरा भी कोई बाप, फादर, है और मुझे इस दिन उसे याद करना चाहिए। जैसे बाकी सारी ज़िन्दगी के दिन उस से कोई रिश्ता नहीं । अपने आप को बैकवर्ड समझने लगा। आउट आफ डेट। एक्सपायरी डेट के करीब। लेकिन सही समय पर मेरी आत्मा के एक झंटाटेदार तमाचे ने सही रास्ते पर ला दिया। मेरा बाप, मेरा फादर, मेरी आत्मा मे हर रोज हर सांस मे मेरे साथ रहता है। कोई याद दिलाए, न दिलाए।”
I too have been receiving and forwarding Father’s Day messages both images as well as video clips to friends and family members of the kind MK has referred to in his message.




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