श्री राम सेतु
यह भी तो हो सकता था? और अब भी हो सकता है – प्रस्तुत हैं श्री रश्मि कांत नागर के विचार
इससे सहमत होना या न होना आपका अधिकार है।
बात पुरानी ज़रूर है, पर इतनी भी नहीं की इस पर चर्चा ना की जाए। विषय है, भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच समुद्री आवागमन में समय और लागत बचाने के लिए, धनुष्कोटि और तलाईमन्नार के बीच प्रस्तावित समुद्री मार्ग, रामसेतु को भंग करता हुआ।
इस योजना को कोंग्रेसी सरकार बड़ी तेज़ी से क्रियान्वित करना चाहती थी, पर बीच में आ गया “रामसेतु”। लड़ाई आस्था और अर्थ (आर्थिक लाभ) के बीच इस सतह तक पहुँची कि कुछ नेताओं ने तो “राम” के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया।
इस प्रश्न चिन्ह ने राम में आस्था रखने वाले, देश के एक बहुत बड़े जनमानस की भावनाओं को गंभीर चोट पहुँचाई। कांग्रेस ने अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मारी, और राम के प्रति आस्था रखने वालों के मन में हमेशा के लिए संदेह का बीज बो दीया। अपने हाथों, किया अपना काम तमाम। क्योंकि यह आस्था धर्म से जुड़ी हुई हैं, मामला अत्यधिक संवेदनशील हो गया। इसने कोई संदेह नहीं कि हिंदू धर्म के अनुयायी राम को विष्णु के अवतार और मर्यादा पुरुष के रूप में आदर्श मानते हैं। ज़ाहिर है कोई भी दलील, चाहे वह सामरिक और आर्थिक नज़रिए से कितनी ही वैध हो, आस्था के सामने घुटने टेक देती है।
यही हुआ भी।
ख़ैर ये तो ऊपरी बात है। मुख्य प्रश्न यह है, कि क्या व्यावसायिक और सामरिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए, कोई विकल्प तब संभव था? क्या विकल्प अब भी है?
परंतु दूसरे विकल्प के बारे में बात करने से पहले कुछ तथ्यों पर गौर कर लें। इंडोनेसिया में रामायण, और कम्बोडिया में अँगोर वाट के मंदिर इस बात के प्रमाण हैं कि भारत भूमि के एक राजा ने इन जगहों पर विजय प्राप्त कर अपना साम्राज्य वहाँ तक फैलाया। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं कि विजयी राजा, विजित देश में अपनी विजय के चिन्ह के रूप में भव्य निर्माण करता है। क्योंकि इन देशों में यह चिन्ह और तबसे चली हुई परंपरायें राम से सम्बंधित हैं, हमें यह स्वीकार करना होगा कि भारत के इस विजयी राजा का नाम राम था और राम ने इन क्षेत्रों पर विजय पाकर अपना साम्राज्य पृथ्वी के इस सुदूर भाग तक फैलाया।
इस संदर्भ में मेरा अपना विचार यह है।
सदियों से हमारी मान्यता यह है की युद्ध राम और रावण में बीच हुआ। राम एक विशाल भूखंड के राजा थे और रावण समुद्र में दूर तक फैले अलग-अलग द्वीपों के। जहाँ राम के पास एक विशाल सुसज्जित थल सेना थी, वहीं रावण के पास एक विशाल सुसज्जित नौसेना। मेरा यह मत है कि रावण यह भली भाँति जनता था कि जमीन पर युद्ध होने पर उसकी हार निश्चित ही होगी। इसके विपरीत अगर राम को समुद्र में युद्ध करने के लिए विवश किया जाए, तो विजय उसके कदम चूमेंगीं।
रावण ने राम को समुद्र में युद्ध की चुनौती देने का विकल्प चुना और सीता का अपहरण कर, लंका में बंदी बना कर अपनी योजना को अंजाम दे दिया। रावण की यही योजना राम को रामेश्वरम तक खींच लाईं। तट पर रावण की नौसेना राम की थल सेना के इंतज़ार में तैयार थी। रावण ने अपने भेदियों की सूचना के आधार पर शायद यह सोचा था की, रामेश्वरम में भगवान शिव की पूजा के बाद राम वहीं से लंका पर युद्ध छेड़ देंगे।
पर राम और उनकी सेना, रामेश्वरम से आपस मुड़ती हुई दिखी। रावण ने समझा की राम ने अपनी हार स्वीकार कर ली है, और वह निश्चिंत हो गया पर साथ ही शायद राम के पुनः वहीं लौटने की संभावना को ध्यान में रखते हुए, अपनी सारी शक्ति रामेश्वरम के आस-पास समुद्र तट पर ही केंद्रित की।
राम की कुछ और ही योजना थी। किष्किन्धा के राजा की सहायता से, प्रकृति के एक ऐसे भाग का चुनाव किया जहाँ से कम से कम समय से एक मार्ग बना कर धरती के रास्ते लंका पहुँच कर रावण पर आक्रमण किया जा सके। तुंगभद्रा नदी के आस-पास का क्षेत्र, जो उस काल में किष्किन्धा के नाम से जाना जाता था, वहाँ के निवासी नदियों की तेज धार में तैर कर शिलाखंडों को आसानी से उठा कर इधर उधर रखने की कला में निपुण थे। राम को उनकी सहायता सहज ही प्राप्त हुई क्योंकि किष्किन्धा वासी भी रावण के सम्भावित आधिपत्य की आशंका से भयभीत थे।
मेरी समझ से तब इन दो स्थितियों ने इस काम को आसान बना दिया। पहला, धनुषकोटि और तलाईमन्नार के बीच समुद्र में एक प्राकृतिक छिछला भूभाग और दूसरा, किष्किन्धा के विशेषज्ञ। जहाँ रावण रामेश्वरम के तट पर राम की प्रतीक्षा करता रहा, वहाँ राम ने धनुषकोटि और तलाईमन्नार के बीच एक भूमार्ग बना कर लंका पर धावा बोला, विजय पाई और रावण का पूरा साम्राज्य अपने अधीन कर लिया।
तो, इस तरह से, रामसेतु समुद्र में एक प्राकृतिक रचना पर निर्मित है और राम के अनुयायियों की दृढ़ आस्था का प्रतीक भी।
तब क्या किया जाए? क्या सदियों पुरानी पौराणिक मान्यता के आधार पर आज के संदर्भ में आवश्यक व्यावसायिक और सामरिक ज़रूरतों को नज़रंदाज़ किया जाए?
नहीं। हमें दूसरा विकल्प ढूँढना चाहिए, और उसे जल्दी से जल्दी पूरा करना चाहिये।
भारत के नक़्शे को देखिए। रामेश्वरम जाने के लिए मंडपम से जाना पड़ता है। बीच में एक जलमार्ग है जो बंगाल की खाड़ी को हिंद महासागर से जोड़ता है। इस समय ये जलमार्ग निश्चित ही बड़े और भारी मालवाहक जहाज़ों के लिए उपयुक्त नहीं है। परंतु क्या इस क्षेत्र में सुयेज या पनामा जैसी नहर बना कर भारी मालवाहकों के लिए आवागमन आसान नहीं बनाया जा सकता?
मुझे शक है कि इस संभावना पर अभी तक गंभीरता से विचार नहीं हुआ है। हो सकता है की इस विकल्प को कार्यान्वित करने की प्रक्रिया में कुछ लोगों को दूसरे स्थान पर पुनर्स्थापित करना पड़े, मगर वर्षों तक विवाद चला कर इस योजना को और अधिक टालना सामरिक और व्यवसायिक दोनो दृष्टियों से ग़लत होगा।
यह मेरा विचार है। इससे सहमत होना या ना होना आपका अधिकार है।
- Understanding Information: The Challenge in the Age of the Internet and Technology
- जानकारी की सही समझ: इंटरनेट और तकनीकी जमाने की चुनौती
- The unfinished Blog: Finally Completing the Story of Meeting Rajeev Deshmukh
- A story in search of an end; “A Bull Made of Steel”
- Shri R N Haldipur. Humility Unlimited