मेरा अमरोहा का दोस्त और उसकी फ़नकारी

मैंने एक अमरोहवी दोस्त को लिखा, पेशे ख़िदमत है जौन एलिया का एक शेर, मै भी बहुत अजीब हूँ, इतना अजीब हूँ कि बस खुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं” ग़ौरतलब हो कि “जौन” अमरोहा के बड़े ऐसे घराने से थे जिसने कई पुश्तों तक अदब, शायरी, फ़िल्मों आदि में अपने योगदानContinue reading “मेरा अमरोहा का दोस्त और उसकी फ़नकारी”

Loading

चिंता, आशा, ममता और मैं

A couple of days ago, my dear friend and former colleague, Dr SC Malhotra, sent me a whatsapp message forwarding a video clip. He has done many audio stories for Vrikshamandir which can be accessed here. Dr Malhotra is a prolific commentator on blogs that are posted on Vrikshamandir. His text message forwarding the videoContinue reading “चिंता, आशा, ममता और मैं”

Loading

दिव्य कृपा

यह कहानी जिसे मैं अपनी मां से बचपन मे सुना करता था आज भी याद है! मैंने ये कहानी उनसे पहली बार उस समय सुनी थी, जब मैं कोई पाँच साल का था। उसके बाद ये सिलसिला कोई चार-पाँच वर्ष और चला होगा। पर इस कहानी के बारे में विशेषता ये है, की मैंने ये कहानी हर बार गहरीContinue reading “दिव्य कृपा”

Loading

हमारी जीजी

मेरी माँ को हमने बचपन से इसी नाम से जाना। १९११ में जन्म और २००८ में देवलोक के बीच की भूलोक की उनकी यात्रा ने संघर्ष ही अधिक देखे। ईश्वर में असीमित आस्था और अपने गुरु- जिन्हें उसने ८-९ वर्ष की उम्र के बाद कभी नहीं देखा, की कृपा में अटूट विश्वास ने उन्हें आध्यात्मिकताContinue reading “हमारी जीजी”

Loading

कहानी – मेरी, आपकी 🤝हमारी

शायद पहली लाइन पढ़ते ही आप को ऐसा लगे जैसे इस क़िस्से के नायक आप स्वयं हैं ! बचपन में स्कूल के दिनों में क्लास के दौरान शिक्षक द्वारा पेन माँगते ही हम बच्चों के बीच राकेट गति से गिरते पड़ते सबसे पहले उनकी टेबल तक पहुँच कर पेन देने की अघोषित प्रतियोगिता होती थी।Continue reading “कहानी – मेरी, आपकी 🤝हमारी”

Loading

कुछ इधर की कुछ उधर की कुछ फिरकी

यह लेख अपने आप मे एक लेख नही वरन एक पत्र से निकली सूझ का नतीजा है । पत्र तो लिखा गया। जिसको भेजना था उन्हे भेज भी दिया गया । पर मन मे यह विचार उठा क्यो न उस पत्र को एक लेख मे परिवर्तित किया जाय। जिन आदरणीय महाशय को वह पत्र लिखाContinue reading “कुछ इधर की कुछ उधर की कुछ फिरकी”

Loading

कहानी पुरानी लकड़हारे की, संदर्भ नया रश्मिकांत नागर द्वारा !

लकड़हारे की यह पुरानी कहानी तो आपने अवश्य सुनी या पढ़ी होगी। जंगल में गहरी नदी किनारे लकड़ी काटते समय हाथ से फिसल कर उसकी कुल्हाड़ी नदी में जा गिरी। जीवन यापन का एकमात्र साधन खोने से दुःखी लकड़हारा गहन चिंता में डूब कर जब रोने लगा तब उसके सामने जलदेवी प्रकट हुई, उसे पहले सोने, फिर चाँदी की कुल्हाड़ियों का प्रलोभन दिया और अंत में, लकड़हारे की ईमानदारी से प्रसन्न होकर, उसकी लोहे की कुल्हाड़ी के साथ सोने चाँदी की कुल्हाड़ियों का पुरस्कार देकर उसे हमेशा के लिए दरिद्रता से बाहर निकाल दिया। लकड़हारे ने अपना शेष सम्पन्न जीवन, सपरिवार संतोष से जिया।

Loading