इनसान तो एक अजीब नमूना है ही कुदरत का, उसकी आस्था उस से भी अजीब है।
आप आस्था की क्या परिभाषा दे सकते हैं? कम से कम मै तो नही दे सकता। जो मै समझ पाया हूं वह यह कि जहां ज्ञान, विज्ञान, विवेक, धर्म सब समाप्त हो जाते हैं, आस्था का प्रस्फुटन होता है।
अनुभव है, अनुभूति है। विश्वास से परे। बिलकुल पुनीत। ऐव्सोल्यूटली प्रीस्टीन।
मै अभी हरिद्वार में हूं। इस वर्ष महाकुम्भ है।
सारी दुनिया कोरोना महामारी के कारण त्रस्त है, घर में बन्द है।
लेकिन आस्था? बस अपना काम करती है।
शिवरात्रि के दिन हरिद्वार मे गंगा स्नान करना है, तो है। उस दिन इस छोटे से शहर मे एक लाख नही, दो लाख नहीं, पूरे बत्तीस लाख लोग शिवरात्रि मनाने और गंगा मे स्नान करने आए।
घाट पर, रोड पर खुले मे सोए। कोई शिकायत नहीं, कोई शिकवा नहीं। सब प्रसन्न।
भक्ति, मुक्ति सब एक पैकेज में। बच्चे, बूढ़े, जवान, औरत मर्द सब मोक्ष पाने की संतृप्ति लिए कोविड १९ का अन्तिम संस्कार कर के बिन्दास मस्त घूम रहे हैं।
बस आस्था।
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