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Stories and Discussions on Human Development, Culture & Tradition | वृक्षमंदिर से कथा, संवाद एवं विमर्श विकास संस्कृति तथा परंपरा पर

कलम जो लिखे और बोले -2

मिथिलेश कुमार सिन्हा
मिथिलेश कुमार सिन्हा

हमारे अंदर की स्मार्ट 

सिटी और हाइवे

कभी आप को एक बीराने, बिल्कुल सुनसान इलाके से बिल्कुल अकेले गुज़रने का मौका मिला है?

 मिला होगा। सब के साथ होता है। 

कैसा अनुभव हुआ होगा। कोई आस पास नहीं। चारो ओर बस अंधेरा और खामोशी। 

एक हल्की सी आवाज भी डरा देती होगी। जिस किसी भगवान या देवता या मसीहा को आप मानते  होंगे और उनके जितने नाम आपको याद होंगे, सब अपने आप बाहर आने लगते हैं। 

आप पीछे भी नही जा सकते कारण वहां भी वही हालत है। अच्छे बुरे काम, अच्छे बुरे आदमी, सब बाइस्कोप की तरह आने जाने लगते हैं। लेकिन छुटकारा नही मिलता। छोटी सी छोटी सी चीज़ भी पीछा नही छोड़ती।

मै किसी पब्लिक रोड या स्मार्ट सीटी की बात नही कर रहा हूं। अपने द्वारा ही बनाए गए अन्दर की स्मार्ट सीटी और हाइवेज की बात है। कभी अन्दर की सैर कीजिये। 

भीड़ के चिल्ल पों मे खामोशी खोजना कितना कचोटता है।

 एक चुभन और टीस के साथ उन्माद और आनन्द का काकटेल। नशा,बेहोशी,थकान, हैंगओवर  और फिर नींद।

कितनी रंगीन और मज़ेदार होती है ज़िन्दगी ।

अनर्गल, आशय, प्रकृति और पाखंड
कहते हैं , “जहां न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि “ । …
घर रहेंगे, हमीं उनमें रह न पाएँगे
कुंवर नारायण की कविता घर रहेंगे, हमीं उनमें रह न पाएँगे,समय होगा, …

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