क्या हनुमान ने सूर्य को सचमुच लील लिया था ?

जुग सहस्र जोजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फल जानू

तथाकथित “लिबरल” “सेक्यूलर” “आधुनिक” शिक्षा ने,भारत जैसे देश मे जिसका हज़ारों साल का इतिहास और परंपरा रही है, रैशनल थिंकिंग के नाम पर जुमलेबाजी और परंपरा का उपहास करना तो ख़ूब सिखाया पर कोई आलटर्नेटिव सोच देने मे असमर्थ रही है। फलस्वरूप शाब्दिक अर्थ तथा अपनी सीमित सोच और पुस्तकीय ज्ञान के तथा ”लिबरल” “सेक्यूलर” “आधुनिक” शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित “सुधी जन” किसी भी दूसरी तरह सोचने मे असमर्थ ही नही वरन सोचने का प्रयत्न भी नही करते।

अपने को लिबरल माने वाले वास्तव मे ख़ुद ही कंज़र्वेटिव ( रूढ़िवादी )हैं । यहाँ रॉबर्ट कॉन्क्वेस्ट की राजनीति के तीन नियमों ( https://www.isegoria.net/2008/07/robert-conquests-three-laws-of-politics/) का उल्लेख उचित रहेगा ।

1-हर कोई उस विषय मे में रूढ़िवादी है जो विषय वह जानता है।

2-कोई भी संगठन स्पष्ट रूप से दक्षिणपंथी नही है वह जल्द ही या बाद में वामपंथी बन जाता है।

3- किसी भी नौकरशाही संगठन के व्यवहार की व्याख्या करने का सबसे सरल तरीका यह माना जाता है कि वह अपने दुश्मनों के एक कैबेल ( चालबाज़ गुट) द्वारा नियंत्रित होता है।

वैसे इस बात पर भी विवाद है कि क्या वास्तव में राबर्ट जी ने ही इन नियमों का प्रतिपादन किया था 🤔

https://skeptics.stackexchange.com/questions/38217/did-robert-conquest-ever-state-his-three-laws-of-politics

….कोई प्राथमिक स्रोत नहीं मिल रहा है, सब कुछ स्वयं संदर्भित हो रहा है।

ख़ैर जो भी हो सो हो पर पहला नियम इन अपने को “लिबरल” मानने वालों पर वास्तव मे “रूढ़िवादियों पर पूरी तरह लागू होता है ।

भारतीय परंपरा मे ज्ञान सिर्फ़ किताबी ही नही वरन रूपक, अन्योक्ति, छद्म रूप से भी कहा, सुना और समझा जाता है ।गुरू बाहरी हो अथवा अपने अंदर बैठे गुरू का आह्वान कर हम समझने का प्रयास करते हैं । हिंदू परंपरा किताबी परंपरा नही है। हमारी परंपरा खुला आमंत्रण देती है अन्वेषण कर अपना अर्थ निकालने का ।

इसी लिये हम परंपरागत रूप से अरूढिवादी रहे हैं । आजकल की प्रजातांत्रिक राजनैतिक होड़ मे जो विकृतियाँ हो रही है यदि उनसे हम अपना ध्यान हटा कर देखे तो सही माने मे हिंदू या सनातन सोच ही लिबरल सोच है । तभी तो सभी प्रकार मे मत मतांतरों, दर्शनों को अपने मे समावेश कर यह परंपरा अब भी जीवित है । ऐसे परिवेश मे जब इस परंपरा को नासमझ, उपहास उड़ाने वाले रूढ़िवादी , ब्राह्मणवादी,स्त्रीविरोधी, प्रतिक्रियावादी और न जाने किन किन नामो से पुकारने लगे हैं। हताशा तो इस बात की है कि तथा कथित आधुनिक हिंदू धर्म परंपरा रक्षक भी ऐसा व्यवहार करते है जैसा किताबी धर्मों के कुछ बेवक़ूफ़ अनुयायी !

बताये कौन सा धर्म या परंपरा यह डंके की चोट पर यह कहती है

इदं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान् ।

एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निम् यमं मातरिश्वानमाहु:।।

ऋग्वेद-1/164/46

अर्थात

एक ही सत् को सत् को जानने वाले ज्ञानी जन इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि , सुंदर पंख वाले गरुड, यम तथा मातरिश्वा के नाम से पुकारते हैं ।

क्या अन्य मतावलंबी ऐसा कहेंगे। उनका रास्ता उनका ही है या जो अन्य माने उनका । बाक़ी जायें भाड़ मे ।

यदि कोई हनुमान जी की सूर्य को निगलने की बात को पाखंड माने तो ठीक है । जिनकी श्रद्धा है हनुमान जी के प्रति वह तो मानेगा । अब वह या तो शाब्दिक अर्थ लेगा नही तो गहराई मे जायेगा । जो गहराई मे जायेगा वह उसका अर्थ तीसरे प्रकार से से लेगा । दोनो या तीनों ठीक हैं अपनी अपनी दृष्टि से ।

“इस संदर्भ में, सूर्य इस सापेक्ष विश्व-स्वर्ग में सर्वोच्च प्राप्ति का प्रतीक है। साधन दो है सकाम कर्म या प्रवृत्ति मार्ग (कर्म या कर्मों का फल भोगने का मार्ग) या निवृत्ति मार्ग या भीतर की ओर मुड़ने का मार्ग है।

जब आकाश में एक चमकदार फल होने का विश्वास करते हुए, एक बच्चे के रूप में, हनुमान जी सूर्य की ओर बढ़े और उसे निगल लिया, तो आकाश के स्वामी इंद्र ने उसे अपने वज्र ( प्रवृत्ति का बल) से संसार को घोर अंधकार से बचाने के लिए प्रहार किया। इससे हनुमान जी के अभिमान की प्रतीक ठुड्डी टूट गई ।हनुमान यानि जिसकी ठोड़ी टूटी हो !

साधक का ध्यान हनुमान का नाम ही -यानि वह जिनकी ठोड़ी टूटी हुई है – बरबस विनम्रता की ओर ले जाता है । विनम्रता ही भक्त की साधना का वह महान गुण है जो भक्त को मुक्ति के उसके लक्ष्य तक ले जाता है यानि निवृत्ति या अंतर्मुखी होने का मार्ग ।

-स्वामी ज्योतिर्मयानंद की टिप्पणी पर आधारित, “हनुमान चालीसा की गूढ़ व्याख्या”

In this context, the sun is the symbol of the highest attainment in this relative world-Swarga or heaven-the goal of sakamya karma or pravritti marga (the path of enjoying the fruits of one’s karma or actions). When, as a child, Hanuman bounded towards the sun and swallowed it, believing it to be a shining fruit in the sky, Indra, the lord of the heavens, struck him with his thunderbolt (the force of pravritti) to save the world from utter darkness. This broke the chin of Hanuman (symbolic of breaking his pride). Thus, the very name Hanuman (broken chin) beckons the mind of the aspirant to humility, a supreme devotional quality that leads the devotee to the highest goal-that is a desire to follow nivritti marga or the path of turning inward to seek liberation.


हनुमान चालीसा


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